Book Title: Pruthvichandra Gunsagar Charitra
Author(s): Raivatchandravijay
Publisher: Padmashree Marketing

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Page 99
________________ के रूप से मोहित चंपा देश का राजा शुक वहाँ पर आया। मंत्री के द्वारा प्रेरणा करने पर, राजा ने गुणमाला का विवाह शुक से किया। पुत्री के वियोग से भयभीत राजा ने, शुक राजा को अपने नगर में ही रुकने की विज्ञप्ति की। गुणमाला के साथ रहते हुए तथा शत्रुराजाओं को झुकाते हुए, शुक राजा ने व्यतीत होते समय को जान न सका। समुद्र में खारापन तथा चंद्र में कलंक के समान, शुक राजा में शिकार का व्यसन था। वह इस दुष्ट दोष को छोडने में बिल्कुल असमर्थ था। इसलिए राजा ने उस शुक को समझाने के लिए सुमुख नामक चतुर भट्ट को नियुक्त किया। ___ एकदिन अवसर प्राप्तकर, सुमुख, शुक से इस प्रकार कहने लगा- मुख में घास (तृण) डालने से शत्रुओं को भी छोड़ दिया जाता है। हा! फिर आप तृण खाकर खुद का जीवन व्यतीत कर रहें इन पशु के समूह को क्यों नित्य मार रहे है? यह कौन-सी नीति है? कौन-सा शौर्य है? और यह किस प्रकार का क्षत्रियधर्म है? जिससे शस्त्र रहित तथा निरपराधी जंतूओं को मनुष्य इस प्रकार मार रहा है। प्राणिवध से पंगुता, कुष्टित्व, ठूलापण आदि फल की प्राप्ति होती है। आत्मसुख की आकांक्षा से मनुष्य को परपीड़ा छोड़ देनी चाहिए। इस प्रकार सुमुख के समझाने पर, शुक ने मन बिना, लज्जा से शिकार करना छोड़ दिया। एकदिन पिता के द्वारा बुलाये जाने पर, शुक राजा अपने नगर की ओर प्रयाण करने लगा। गर्भिणी गुणमाला को साथ में लेकर प्रयाण करते हुए, वह हमारे इस तपोवन में आया। वनचर जीवों को देखकर, शुक शिकार करने के लिए अत्यंत विवश बन गया। वह उन जंतूओं का शिकार करने के लिए दौडा। उतने में ही उस उग्र पाप के कारण, वह तृण के समूह से आच्छादित गहरे खड्डे में गिरा। वहाँ पर रहा तीक्ष्ण खीला उसके पेट में घुस गया। उस वेदना से अत्यंत पीड़ित शुक को, सेवकों ने बाहर निकाला। गुप्तचरों से इस घटना के बारे में जानकर, जबतक वसंतराजा, पुष्पमाला के साथ वहाँ पर पहुँचा, उससे पहले ही शुक ने आयुष्य पूर्ण कर दिया। उस शोक से दुःखित तथा अग्नि में प्रवेश करने की इच्छावाली गुणमाला को उसके माता-पिता ने कैसे भी कर रोक लिया। गुणमाला अत्यंत दीनतापूर्वक छाती पीटती हुई, ऊँचे स्वर में रोने लगी। पश्चात् गुणमाला को साथ लेकर, वे दोनों कुलपति के पास आये। कुलपति ने भी इनको इस प्रकार समझाया - राजन्! चारों गतियों में भ्रमण करने से उत्पन्न जन्म, मरण, दुःख के समूह से यह संसार भयंकर है, जहाँ पर प्राणी क्लेश प्राप्त करते है। लक्ष्मी चंचल है, प्राण अस्थिर है, स्वजनों का संग अस्थिर है। व्यर्थ ही प्राणी इस संसारवास में सुख की आशा करता है। इसलिए राजन्! बंधुओं पर से प्रेमसंबंध को छोड़कर, अपने मन को धर्म में लगाओ और g4

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