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कार्य निवेदन किया। योगी ने कहा - कृष्ण चतुर्दशी की रात्रि में, आप अकेले ही मेरे सहायक के रूप में आये। मैं ज्वालिनी महाविद्या की आराधना कर पुत्ररत्न तथा अन्य सर्व इष्ट भी दिलाऊँगा । योगी के जाने के बाद मंत्रियों ने कहा - राजन् ! उपाय भव्य है, फिर भी इसका लेशमात्र भी विश्वास नही करना चाहिए क्योंकि प्राणी का स्वभाव विचित्र होता है। मंत्रियों का वचन स्वीकारकर, निश्चित दिन की रात्रि में, राजा तलवार लेकर श्मशान गया। तब योगी भी वहाँ पर आ गया। भूमि की शुद्धिकर, योगी ने चिता की अग्नि दीपक से मंडल का आलेख किया। और राजा से कहा - यहाँ से दक्षिण दिशा में वटवृक्ष है। उसकी शाखा पर जो पुरुष लटक रहा है, उसे आप भयरहित बनकर ले आये। उस पुरुष के पूछने पर भी आप प्रत्युत्तर न दे। राजा वटवृक्ष पर चढ़ा और तलवार से उस पुरुष के फंदे को काट दिया। राजा उसे ग्रहण करने के लिए वृक्ष से नीचे उतरने लगा। उतने में ही राजा ने उसी शाखा पर उस पुरुष को पुनः लटकते देखा।
ऐसा दो-तीन बार हुआ । राजा ने पुनः शाखा पर लटक रहे उस शव के फंदे को छेदकर, शीघ्रतापूर्वक वृक्ष से नीचे उतरा और जमीन पर पडे शव को उठाकर वापिस लौटने लगा। उतने में ही वेताल उस शव में प्रवेशकर राजा से कहने लगा - मूढ ! खुद के वीर स्वभाव को छोडकर, कुकर्म का आचरण कर रहे हो। तथा राक्षसों को बुलाने के लिए इस प्रकार रात्रि के समय भ्रमण कर रहे हो । यदि तू मुझे नही छोडेगा तो यह दुष्ट योगी तेरी भूतबलि दे देगा। राजा वेताल की बातें सुनकर भी क्षोभित नहीं हुआ। तब पुनः वेताल ने कहा - तेरा साहस सुंदर है और तेरा संकल्प भी मैंने जान लिया है। हे वत्स! मैं तुझ पर खुश हूँ। इसलिए मैं तुझे सत्य हकीकत बता रहा हूँ । तुझे पुत्र की इच्छा है किंतु यह दुष्ट योगी तेरे प्राणों की बलि देकर, मुझे वश करना चाहता है। इसलिए तुम क्लेश मत करो क्योंकि सात रात्रि के बाद तुझे पुत्र होगा। तुमने योगी की बात स्वीकार की थी। इसलिए वचन के परिपालन हेतु शव वहाँ पर ले जाओ । पश्चात् योगी के माँगने पर भी, उसके हाथ में तलवार मत सौंप देना, जिससे वह दुष्ट तुझे जीत नही सकेगा।
वेताल के द्वारा कही गयी बातें याद रखकर, राजा शव को योगी के समीप ले गया। योगी ने पानी से उस शव को स्नान कराकर, मंडल में रखा और कहने लगा - राजन् ! इसे तलवार दो ! तत्काल ही वेताल की बातें स्मरण कर कहा
भगवन्! सुभट किसी को भी खुद की तलवार नही देते है। इसलिए आप ही इसे खुद की तलवार दे। मैं आपका अंगरक्षक बनूँगा । योगी ने कहा - मंत्रसिद्धि के लिए इसके हाथ में हथियार धारण कराया जाता है। तब राजा ने कहा - प्रभु! मेरे होते हुए आप पर क्रोधित यम भी प्रभावशाली नही होगा । इसलिए आप अपना
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