Book Title: Pruthvichandra Gunsagar Charitra
Author(s): Raivatchandravijay
Publisher: Padmashree Marketing

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Page 75
________________ सत्य से अग्नि भी शीतल हो जाता है, सत्य से पानी मार्ग देता है। सत्य के कारण तलवार छेद नही सकती और सत्य से सर्प भी रज्जु (डोर) बन जाता है। जिससे इहलोक में प्राणियों को मूकत्व आदि दोष होतें हैं और परलोक में अपयश, ऐसे उस असत्य को चतुर पुरुष छोड़ दे। सत्यवादी पुरुष धन के समान पृथ्वीतल पर किसी के द्वारा भी ठगा नही जाता है और झूठ बोलनेवाला पुरुष धरण के समान खुद को ही खुद से ठगता है। धन और धरण की कथा इस प्रकार इसी विजय में श्रेष्ठ ऐसा सुदर्शनपुर नामक नगर है। उस नगरी में सुदत्त व्यापारी निवास करता था। उसके धन और धरण नामक दो पुत्र थे। धन स्वभाव से ही सत्यवादी तथा सत्य का पक्षपाती था, किन्तु धरण झूठ, कपट आदि में निपुण था। उन दोनों भाईओं की परस्पर प्रीति थी। धन, मन से कपट रहित था और धरण कपटी था। कहा भी गया है कि मन, वचन और काया की शुद्धि सज्जन पुरुषों को ही होती हैं, दुर्जनों को नही। माता-पिता धन को बहुत गौरव देते थे। यह देखकर धरण सोचने लगा - इस घर में रहते हुए भी, माता-पिता मुझे थोडा भी आदर नही देते हैं। एकदिन धरण ने धन से कहा - भाई! अब दूर देशों में जाकर, मेरी धन कमाने की कुतूहलता है। तब धन ने पूछा - भाई! वहाँ जाकर धन कैसे कमाया जा सकता है? क्योंकि मार्ग बहुत लंबा और विषम है और हम दोनों अभी अनुभवहीन बालक हैं। धरण ने कहा - भाई! देशांतर जाने के बाद, हम दोनों कपट आदि युक्ति से धन कमायेंगें। यह सुनकर, धन ने अपने दोनों कानों को हाथ से ढंक दिये और धरण से कहने लगा - भाई! नरक आदि दुर्गति देनेवाले ऐसे वाक्य मत बोलो। उससे तुम मिच्छा मि दुक्कडं दो और पुनः ऐसा मत बोलना क्योंकि न्यायमार्ग से कमाई गई लक्ष्मी ही इहलोक और परलोक में सुखदायी बनती है। यह बात इसे पसंद नहीं आई है, इस प्रकार हृदय में विचारकर धरण ने कहा - मैं भी मन से यह नही चाहता हूँ, किंतु तेरे चित्त के अभिप्राय को जानने के लिए ही ऐसा पूछा था। व्यापार करने के लिए, हम नीवी (मूडी) ग्रहण कर, धन कमायेंगें इस प्रकार प्रेमपूर्वक धरण ने विश्वास दिलाया। धन ने भी इस बात को स्वीकार कर ली। ___पश्चात् माता-पिता से कहे बिना ही नगर, गाँव, उद्यान आदि को पार करते हुए किसी स्थान पर रुके। एकदिन धरण सोचने लगा कि - यह मार्ग पर क्यों नहीं आ रहा है? इसलिए कोई उपाय करता हूँ। ऐसा विचार कर चतुर धरण ने धन से कहा - भाई! लोक में धर्म से जय होती है अथवा पाप से? इसका उत्तर दो। तब धन ने कहा - यह बात तो आबाल-गोपाल तक प्रसिद्ध है कि धर्म से ही विजय, संपत्ति, यश, आदि सभी लोग प्राप्त कर सकते हैं। और अधर्म से प्राणिगण 70

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