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अपयश, दुःख, दुर्गति आदि प्राप्त करतें हैं। धरण ने कहा - तुम मुर्ख हो और कुछ भी तत्त्व नहीं जानते हो। पाप से ही जय होती है। इस विषय में उन दोनों का विवाद बढने लगा। धरण ने कहा - वाद के निर्णय के लिए हम दोनों समीप के गाँव में चलें। निर्णय में जो झठा ठहराया जायेगा, उसकी एक आँख निकाल दी जायेगी। धन ने कहा - वास्तव में तो सत्य मेरे ही पक्ष में है। मैं आँख तो नही लूँगा इस प्रकार वाद करते हुए वे दोनों गाँव में गये और सभा में उपस्थित लोगों से इसका उत्तर पूछा। उन्होंने कहा - इस समय पाप से जय दिखाई देता है, किन्तु धर्म से नही। यह सुनकर धरण खुश होते हुए कहने लगा - अब तुम मुझे आँख निकालकर दो। दूसरे दिन भी वे दोनों इसी प्रकार विवाद करने लगे। दूसरी आँख की भी शर्त रखकर पुनः उन्होंने ग्रामवासियों से पूछा। उन्होंने पुनः धरण के पक्ष में जवाब दिया।
वहाँ से वे दोनों वन में चले गये। धरण ने कहा - अब भी मेरा वचन स्वीकार कर लो। तुम यह कह दो कि मैं तेरे साथ द्यूत नही खेलूँगा। अन्यथा हारी हुई दोनों आँखें मुझे दे दो। तब उस सत्यवादी धन ने कहा - अब तो जुगार खेलने का सवाल ही नही है और मेरी आँखें तेरे आधीन है ही। जो तुझे पसंद हो वह करो। धन के इस प्रकार कहने पर, धरण ने तथा प्रकार वृक्ष के दूध को उसकी
आँखों में डाला। उससे तुरंत ही आँखें निकल गई और धरण ने फेंक दी। फिर भी धन ने उस पर लेशमात्र भी क्रोध नही किया। कपट बुद्धिवाले धरण ने कहा - हा! मैंने तुझ पर कैसा अत्याचार किया है? धन ने मधुर वचनों से विलाप करते उसे आश्वासन दिया। भाई! इस ओर शेर-शेर है। उससे तुम शीघ्र भाग जाओ, जिससे हमारे कुल का क्षय न हो जाएँ। इस प्रकार धरण कहते हुए और अपने मनोरथ को सफल मानते हुए वहाँ से पलायन कर अपनी नगरी में पहुँचा। धन भी घूमता हुआ एक विशालवृक्ष के पास आया। मेरा भाई कहाँ है? कहाँ गया है अथवा वह कैसे होगा? इस प्रकार बार-बार धन खेद करने लगा। वृक्ष के अंतर में रही हुई वनदेवता ने उसे देख लिया और सोचने लगी - अहो! इस धन की सज्जनता! अहो! उस धरण की दुर्जनता! देवी ने प्रत्यक्ष होकर कहा - वत्स! उसकी चिंता से पर्याप्त हुआ। वत्स! नेत्ररोग मिटानेवाली इस अंजन औषधि को ग्रहण करो। धन को औषधि देकर देवी अदृश्य हो गई। अंजन के प्रयोग से धन की आँखें पुनः व्यवस्थित हो गई।
भयंकर अटवी को पारकर, धन सुभद्रनगर में पहुँचा। वहाँ की राजकन्या नेत्ररोग से पीडित थी। उसके लिए ढोल बजाये जा रहे थे और ऐसी घोषणा की जा रही थी कि - जो कन्या-रत्न को नेत्ररोग रहित करेगा, उसे राजा अपने राज्य का अर्द्धभाग तथा कन्या देगा। इस घोषणा को अच्छी प्रकार से सुनकर, धन ने
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