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कहा - यह सुंदर विचार है। पश्चात् उन्होंने संदूक में अत्यंत मत्त और भयंकर दो वानरियों को डालकर गंगा में बहाया। राजा हर्षपूर्वक हमें इधर ले आया।
इधर तापस के शिष्य भी सोचनें लगें - गुरु हमसे कभी झूठ नही बोलेंगे, इसलिए लंबे समयतक वही पर रुके रहे। पश्चात् संदूक को देखकर, उन्होंने बाहर निकाली और उस पापी को सौंप दी। सूर्यास्त होने के बाद गुरु ने अपने शिष्यों से कहा - शिष्यों! आज तुम मठ में ताला लगाकर दूर चले जाना। चिल्लाहट सुनने पर भी इधर मत आना, अन्यथा मंत्रसिद्धि में विघ्न होगा। शिष्य भी स्वीकारकर दूर चलें गएँ। तापस संदूक के समीप आकर कहने लगा - भद्रे! गंगा ने प्रसन्न होकर, तुम दोनों को वर के रूप में मुझे भेजा है। मेरी याचना का भंग मत करना, मैं तुम्हारा दास हूँ। इस प्रकार कहते हुए उसने संदूक खोलकर अंदर हाथ डाला। इतने में ही क्रोधित होकर दोनों वानरियों में तपास के कान, नाक, कपाल, होठों को अपने दाँतों से छेद डालें तथा अपने कठोर नखों से उसके हाथ, पैर आदि छिर डालें। तब चिल्लाते हुए गुरु ने आवाज लगायी - शिष्यों! दौड़ों, दौड़ों, ये दोनों बंदरियाँ मुझे खा रही है। इस प्रकार विलाप करता हुआ वह भूमि पर गिर पडा। शिष्य भी गुरु की आवाज सुनकर सोचने लगें - गुरु ने कहा था कि आवाज सुनायी देने पर भी समीप में मत आना, अन्यथा मंत्रसिद्धि में विघ्न होगा। ऐसा विचारकर, वे वहीं पर रुके रहे। दोनों बंदरियों के द्वारा संपूर्ण शरीर पर प्रहार करने से, वह पापी तापस चार प्रहरों के बाद प्राणों से मुक्त बन गया। अज्ञान तप से मरकर वह राक्षस बना। विभंग ज्ञान से इसने जान लिया कि सुभूम राजा ने मेरी दोनों प्रियाओं का अपहरणकर, कपटपूर्वक संदूक में बंदरियाँ डालकर मुझे मरवाया है। इसलिए रुष्ट होकर उसने सुभूम राजा को मार दिया
और नगर को उज्जड़ बना दिया है। पूर्व प्रेम के कारण हम दोनों को बचाएँ रखा है। यहाँ पर दो अंजन की कूपिकाएँ है। जब वह राक्षस इधर आता है, तब काले अंजन से हम दोनों को स्त्री रूप में करता है। पुनः जब वह यहाँ से जाता है, तब सफेद अंजन से ऊंटनी बनाकर चला जाता है। सज्जनपुरुष! हम दोनों का यही वृत्तांत है। आप यम की उपमावाले इस राक्षस से हमें बचाएँ।
__ उनकी करुण कथा सुनकर, सुमित्र ने पूछा - वह राक्षस यहाँ पर कितने दिनों के बाद आता है? और यहाँ से किधर जाता है? तब उन्होंने कहा - वह राक्षसद्वीप में जाकर, दो-तीन दिनों के बाद शीघ्र ही इधर आ जाता है और पक्ष अथवा मास पर्यंत रहता है। किंतु वह आज यहाँ पर निश्चय ही आनेवाला है। इसलिए आप भोयरे में गुप्तरीति से छिप जाए। वह प्रभात के समय राक्षसद्वीप चला जाएगा। पश्चात् हम उचित उपाय करेंगे। सुमित्र भी उन दोनों को सफेद अंजन से वापिस ऊंटनीकर भोयरे में छिप गया। इधर संध्या के समय वह राक्षस वापिस
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