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वह बलशाली ही इस कन्या का भर्ता होगा।
उस दिन से लेकर महावतों ने भी गंधहस्ति को सुरक्षित रखा था। किन्तु कल ही वह हाथी आलानस्तंभ को उखाड़कर, इस अरण्य में आया था। पिता के आदेश से चन्द्रप्रभा भी वहाँ आ गयी और उसने ही आपके कंठ में वरमाला डाली थी। सुंदरकुमार! यह दिव्यवस्त्र आदि सामग्री उसीने भेजी है। इस प्रकार कहकर वह स्त्री मौन हो गयी। इसी बीच कहीं पर से, उस अरण्य में सेना आई। सेना के आगे चलते किसी घुड़सवार ने राजकुमार से पूछा-आपने इस वन में, हाथी को वश कर और उस पर चढ़े किसी पुरुष को देखा था? हमारे राजा उसका दर्शन करना चाहते हैं। विद्याधरी स्त्री ने कहा-यह राजकुमार वे ही है। घुड़सवार ने यह जानकर, अपने स्वामी वसुतेज राजा को इस घटना का निवेदन किया। मंत्रियों ने राजकुमार को आदर सहित आह्वान किया। वसुतेज राजा ने अपनी आठ कन्याएँ तथा राज्य भी रत्नशिख राजकुमार को सौंप दिया और स्वयं ने सद्गुरु के पास दीक्षा ग्रहण की। शशिवेग राजा भी इस समाचार को सुनकर, हर्ष से चंद्रप्रभा कन्या दी और हजार विद्याओं से युक्त अपराजिता विद्या भी साथ में दी।
सुवेग विद्याधर ने यह व्यतिकर सुना। उसने हाथी का रूप धारण कर, कुमार के नगर उद्यान की सीमा में आया। उस हाथी को जीतने के लिए, कुमार भी कुतूहलता से वहाँ आया। कुमार ने हाथी को वश किया और बाद में उस पर चढ़ा। इतने में ही वह हाथी आकाश में उड़ गया। इस आकस्मिक घटना से मुंझाये कुमार ने दृढमुष्टि से उस पर प्रहार किया। घात की पीड़ा से सुवेग विद्याधर मंत्र का स्मरण करना भूल गया। वह अपने वास्तविक स्वरूप में आ गया और 'नमो अर्हद्भ्यो ' (अरिहंत भगवंतों को नमस्कार हो) कहते हुए भूमि पर गिर पड़ा। कुमार यह पद सुनकर, हा! मुझे धिक्कार हो, मैंने अपने साधर्मिक की आशातना की है, इस प्रकार विचार करने लगा और पानी के छिंटकाव तथा हवा के वींजने से उसे होश में लाया।
रत्नशिख कुमार ने कहा-आपका सम्यक्त्व अत्यंत सुंदर है, क्योंकि आपदा में भी आपने स्वस्थ चित्त से नमस्कार महामंत्र का स्मरण किया था। तत्त्व की अज्ञानता के कारण मैंने आप पर प्रहार किया था, वह अपराध क्षमा करें। तब सुवेग विद्याधर ने कहा-यह तेरा दोष नहीं है, किन्तु मैं ही महापापी हूँ। क्योंकि जान-बूझकर ही मैं तेरा बिगाड़ना चाहता था। मैं चक्रपुर का राजा सुवेग विद्याधर हूँ। पिता के द्वारा शशिवेग विद्याधर को राज्य देने पर भी, अपने भाणजे के पक्षपात के कारण, उसे नगरी से बाहर निकाल दिया था। भाणजे के राज्य पर युद्ध की बात सुनकर मैं क्रोधी बन गया था और तुम्हारा वध करने के लिए व्यर्थ ही हाथी का रूप बनाकर आया था। साधर्मिक पर वात्सल्य रखनेवाले तूने मुझे सुंदर
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