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इन्द्रजाल है? तूने विश्व को नायकरहित क्यों कहा? तब उस कन्या ने कहाजिसका कोई नाथ नहीं है, उसके लिए तो विश्व अनायक ही है। पुनः यह इंद्रजाल मैंने नाथ के हेतु से ही बनाया है। इसका कारण सुनो। मैं अंगश्री नामक प्रौढ स्त्री हूँ। मैं बहुत से पुरुषों के द्वारा भोगी गई हूँ। इस समय यदि अनाथ मुझ स्त्री के आप नाथ बनते हैं, तो मैं पृथ्वी को सनाथ मानूँगी। तब कुमार ने कहा-सुंदरी! मैं स्वप्न में भी परस्त्री का स्वामी बनने की इच्छा नहीं रखता हूँ। छरी के समान परस्त्रियों से, जिनका मन विरक्त हो चुका है, उन उत्तम पुरुषों को मैं मन, वचन, काया से नमस्कार करता हूँ। दीन आदि लोगों के परिपालन करने में, मैं नाथ बन सकता हूँ, किंतु प्राणनाश होने पर भी परस्त्री का संग नहीं करूँगा। तब कन्या ने कहा-गुण सम्पन्न तूने मेरे चित्त का हरण कर लिया है। इससे बात करना व्यर्थ है, इस प्रकार सोचकर कमलसेन वहाँ से चलने लगा।
इसी बीच भवन के अंदर से गर्जना और तर्जना करते किसी पुरुष की इस प्रकार की वाणी सुनाई दी-रे रे! कुत्ते के समान शून्य घर में प्रवेश कर, निकल रहे हो। सुंदरकुमार! यदि तुम शूर हो तो, मेरे सामने आ जाओ। कुमार भी सिंह के समान, उसके संमुख होकर कहने लगा-रे! स्वेच्छा से फिर रहे सिंह को क्यों रोक रहे हो? उस पुरुष ने कहा-यदि तू सिंह हो तो मेरे सिद्ध शस्त्र का सामना करो। कुमार ने प्रहार करने को कहा। तब उसने कहा-पहले तुम प्रहार करो। कुमार ने कहा-मुझ पर प्रहार नहीं करनेवाले पर, मैं कभी भी पहले प्रहार नहीं करता हूँ। सत्त्व से भरे कुमार को देखकर, वह पुरुष कहने लगा-तुम सत्त्वशाली हो और अंगदेश राज्य का भोक्ता बनोगे। महासत्त्वशाली! मुझे क्षमा करना। मैंने तुझे बहुत खेदित किया है। मैंने खुद के कार्य के लोभ से तुझे अपने माता-पिता से दूर किया था और तुम्हारी सत्त्व की परीक्षा करने के लिए स्त्री और पुरुष का रूप बनाकर मोहित किया था। मैं चंपादेश राजा का सान्निध्यकारी देव हूँ। और इस समय तुझे अंगदेश का राजा बनाना चाहता हूँ। उससे तुम जरा भी खेद मत करना। इस प्रकार कहकर देव अदृश्य हो गया।
कुमार भी यह सुनकर विस्मित हुआ। घूमते हुए एक सरोवर को देखा। वहाँ स्नान कर, विशाल आम्रवृक्ष की छाया में विश्राम करने लगा। उतने में ही कोई पुरुष सामने से आकर, कुमार से कहने लगा-प्रभु! कृपा कर सुने! चंपा देश के राजा गुणसेन, क्रीड़ा करने के लिए वन में आये हुए हैं। आपको बुलाने के लिए उन्होंने मुझे भेजा है। आप शीघ्र ही घोड़े पर चढ़कर वहाँ आये। इसका कारण तो राजा ही जानते हैं। यह झूठ नहीं बोल रहा है, इस प्रकार सोचकर कुमार घोड़े पर चढ़ गया और राजा के पास आया। वहाँ अशोकवृक्ष के नीचे बैठे राजा को, कुमार नमस्कार करने लगा। राजा ने ईशारे से निषेध किया। यह क्या है? इस प्रकार के
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