Book Title: Pruthvichandra Gunsagar Charitra
Author(s): Raivatchandravijay
Publisher: Padmashree Marketing

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Page 18
________________ जानकर मनुष्यों को क्रोध छोड़कर धर्म में बुद्धि का उपयोग करना चाहिए। दूसरे प्राणियों के वध के कारण, खुद के प्राणों की आहूति करने से अधिक पाप होता है। इस प्रकार जानकर राजन् ! तू भी इस कदाग्रह रूपी ग्रह को छोड़ दो। मन को संयम में रखकर, चित्त में क्षमा धारणकर, श्री जिनधर्म को स्वीकारकर इहलोक - परलोक में सुखी बनों । गुरु की वाणी सुनकर राजा ने कहा पूज्य ! दुःख रूपी दावानल से जलाएँ जाने पर, उस कथा से भी क्या प्रयोजन है? इस लिए आप मुझे धर्मशंबल प्रधान करे। गुरु ने कहा महाराज! दुःख से पीडित होकर तुम मरना चाहते हो, किन्तु विशेष से दुःख प्राप्त करोगे! यहाँ पर यह कथानक सुनो - - गंगा के तट पर स्थित किसी मंडल में षट्कर्म में निरत तथा शौचाचावाला कपिल नामक ब्राह्मण रहता था । एकदिन वह अपने चित्त में सोचने लगा- विष्टा, मूत्र आदि से अपवित्र मार्ग पर जातें हुए ब्राह्मणों का शौचाचार कैसे हो सकता है ? और मनुष्य, कुत्ते, बिल्ली आदि का मूत्र, विष्टा पानी के प्रवाह में बहकर जलाशय में गिरतें हैं। उनमें स्नान करने से ब्राह्मणों की शुद्धि कैसे हो सकती है ? उसने एक नाविक से समुद्र के मध्य में रहे तथा इक्षुओं से भरे अभयद्वीप के बारे में सुना। निधि प्राप्ति के समान यह सुनकर कपिल आनंदित हुआ और नाव में बैठकर उस द्वीप में पहुँचा । वहाँ पर इक्षुओं के रस का आस्वादन लेता था और तीनों काल चांडाल के कुएँ में स्नान करता था। इस प्रकार सुखपूर्वक समय बिताने लगा । इक्षु दंड से कभी उसके होंठ विदारण हो गये। तब कपिल सोचने लगा, यदि इक्षु के फल होते तो सुंदर होता । स्वदेश में तो इक्षु पर फल नहीं आते, किन्तु इस द्वीप के प्रभाव से फल आ सकते हैं। ऐसा विचारकर वह इधर-उधर देखने लगा। उतने में ही किसी व्यापारी के शुष्क विष्टा को फल की भ्रांति से खा लिया। कितने ही दिनों के बाद उसने वहाँ पर किसी व्यापारी को देखकर वह उससे संभाषण करने लगा। व्यापारी ने कहा कि - जहाज के तूट जाने से, फलक की सहायता से इस द्वीप में आया हूँ। कपिल ने पूछा - देह का पोषण किससे करते हो? उसने कहा - इक्षु भक्षण से । कपिल ने पूछा - क्या तुम इक्षु के फल को खाते हो? व्यापारी ने पूछा- वे फल कैसे होते है ? कपिल ने कहा - मैं तुझे दिखाता हूँ इस प्रकार कहकर उसने वहाँ पर पडी विष्टा दिखायी। उन कल्पित फलों को देखकर, व्यापारी दुःखित हुआ और सोचने लगा अज्ञानता से इसने विष्टा को भी फल मान लिया है। व्यापारी ने पूछा - भद्र! रस कैसा है ? इसे खाते हुए कितना काल हुआ है ? कपिल ने कहा इसका मधुर रस है और एक महीने से इसे खा रहा हूँ। व्यापारी ने कहा- तुम अशुचि से डरकर यहाँ पर आएँ थे, किंतु तुम खुद ही उसका भक्षण कर रहे हो। यह बात सर्वविदित है कि इक्षु के 13 - -

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