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किया । इस कार्य में उसके दो अन्य पुत्र पामा और बलराज भी उसके सहायक थे। राणा कुम्भा के अन्य प्रसिद्ध राजकीय स्थपति सूत्रधार मण्डन हुए। वे संस्कृत भाषा के भी अच्छे विद्वान थे। उन्होंने निम्न लिखित शिल्प ग्रन्थों की संस्कृत में रचना की----
प्रासाद मण्डन, पास्तु मदन, रूप मण्डन, राजबल्लम मण्डन, देवता भूति प्रकरण, रूपवतार, वास्तुसार, वास्तु-शास्त्र । राजबल्लभ अन्य में उन्होंने अपने संरक्षक समाद राणा कुम्भा का इस प्रकार गौरख के साथ उल्लेख किया है..
"श्रीमेदपाटे नुपकुम्भकर्ण-स्त निराजीवपरागसेवी । समण्डनाल्यो मुवि मूत्रधारस्तेनोड तो भूपत्तिकालभोऽयम् ।'
रुपमण्डन ग्रन्थ में सूत्रधार मण्डन ने अपने विषय में लिखा है---
"श्रीमह वो मेदवाटाभिधाने क्षेत्राख्योऽभूत सुनधारी वरिष्ठः । पुत्री ज्येष्ठो मण्डनस्तस्य तेन प्रोक्त शास्त्र मण्डन रूपपूर्वम् ।"
इससे ज्ञात होता है कि मान के पिता का नाम सूत्रधार क्षेत्र था । इन्हें ही अन्य लेखों में क्षेत्राक भी कहा गया है । क्षेत्राक का एक दूसरा पुत्र सूत्रधार नाथ भी था जिसने 'वास्तु मंजरी' नामक प्रस्प की रचना की। सूत्रधार मण्डन का ज्येष्ठ पुत्र सूत्रधार गोविन्द और छोटा पुत्र सूत्रधार ईश्वर था। सूत्रधार गोविन्द ने तीन अन्यों की रचना की.....उबार धोररिण, फलानिधि और द्वारदीपिका । कलानिधि प्रम में उसने अपने विषय में और अपने संरक्षक राणा श्री राजमल्ल ( रायमल्ल ) के विषय में लिखा है...
"सूत्रधारः सदाचारः कलाबारः कलानिधिः । . दण्डाधारः सुरागारः श्रिये गोविन्ययादित् ।। राज्ञा श्री राजमल्ने (न) प्रीतस्यामि (ति) मनोहरै। प्रणम्यमाने प्रासादे गोविन्दः संभ्यधादिदम् ॥"
(विक, मे. १५५४ ) राणा कुभा की पुत्री रमा बाई का एक लेख (विक्रम सं. १५५४) जायर से प्राप्त हुआ है जिसमें क्षेत्राक के पौत्र और सूत्रधार मण्डन के पुत्र ईश्वर ने 'कमठाणा बनाने का उल्लेख है--
"श्रीमेदपाटे वरे देशे कुम्भकर्णनएगृहे क्षेत्राकसूत्रधारस्य पुत्री मण्डन प्रात्मवान सूत्रधारमण्डन सुत ईशरए कमठागु घिरचितं ।"
ईश्वर ने जाकर में विष्णु के मन्दिर का निर्माण किया था । इसी ईश्वर का पुत्र सूत्रधार छीतर या जिसका उल्लेख विक्रम सं. १५५६ (१४६ ई.) के चितौड़ से प्राप्त एक लेख में आया है। यह राणा राय
१----गृह और देवालय प्रादि इमारती काम को अभी भी राजस्थानीय शिल्पी 'कमठाणा' बोलते हैं ।