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सुप्रसिद्ध विद्वान् डॉ. वासुदेवशरणाजी अग्रवाल 'अध्यक्ष-कला वास्तु विभाग, काशी विश्वविद्यालय' द्वारा लिखी हुई गूजराती अनुवाद वाला प्रासाद मण्डन की--
भूमिका
जयपुर के श्री पं. भगवान शंस जैन उन चुने हुए विद्वानों में से है, जिन्होंने भारतीय स्थापत्य और वास्तु शिल्प के अध्ययन में विशेष परिश्रम किया है। सन् १९३६ में अकुरफेर विरक्ति 'वास्तु-सारप्रकरण नामक वास्तु संबंधी महत्वपूर्ण प्राकृत अन्य को मूल हिन्दी भाषान्तर और अनेक चित्रों के साथ उन्होंने प्रकाशित किया था। उस अन्य को वा ही मुझे निश्चय ही गया के पं. भगवानदास ने परम्परागत भारतीय शिल के पारिभाषिक शब्दों को ठीक प्रकार समझा है और उन पारिभाषाओं के प्राधार पर वे मध्य कालीन शिल्प-ग्रन्थों के सम्पादन.पीर पाख्यान के सर्वत्रा अधिकारी विधान है। शिल्प शास्त्र के अनुसार निर्मित मन्दिरों या देव प्रासादों के वास्त को भी वे बहुत अच्छी व्याख्या कर सकते हैं. इसका अनुभव मुझे तब हमा जब कई वर्ष पूर्व उन्हें साथ लेकर मैं भामेर के भव्य मन्दिरों को देखने गया और वहां पण्डितजी ने प्रासाद के उत्सेध या उदय संबंधी भिन्न भिन्न भागों का प्राचीन पान्दाबली के साथ विवेचन किया। इस प्रकार की योग्यता रखने वाले विद्वान इस समय विरल ही हैं। भारतीय शिल्प-शास्त्र के जो अनेक अन्य विद्यमान हैं उनकी शचीन शब्दाबली से मिलाकर अद्यावधि विद्यमान मंदिरों के वास्तु-शिरूप की व्याख्या, यह एक प्रत्यन्त्र पाबश्यक कार्य है । जिस की पूर्ति वर्तमान समय में भारतीय स्थापत्य के सुस्पष्ट अध्ययन के लिये यावश्यक है । श्री पं० भवानदास जैन इस ओर अग्नसर है, इसका महत्वपूर्ण प्रमाण उनका ऊपर किया था 'प्रासाद-मण्डन' का वर्तमान गुजराती अनुवाद है। इसमें मूल अन्य के साथ गुजराती व्याख्या और अनेक टिप्पणियां दी गई है और साथ में विषय को स्पष्ट करने के लिए मनेक विष भी मुद्रित है।
'सूत्रधार मंडन के विषय में हमें निश्चित जानकारी प्राप्त होती है। वित्तौड़ के राणा कुंभकर्ण या कुम्भा ( १४३३-१४६८ ई० ) राज्यकाल में हुए । राणा कुम्भा ने अपने राज्य में अनेक प्रकार से संस्कृति का संवर्धन किया । संगीत की उशति के लिए उन्होंने प्रत्यन्त विशाल 'संगीत--राज' ग्रंथ का प्रणयन किया। सौभाग्य से यह ग्रन्थ सुरक्षित है और इस समय हिन्दु विश्व विद्यालय की घोर से इसका मुद्रण हो रहा है। राणा कुम्भा ने कवि जयदेव के गीत गोविन्द पर स्वयं एक उलम टीका लिखी। उन्होंने ही चित्तौड़ में सुप्रसिद्ध कीर्तिस्तंभ को निर्माण कराया । उनके राज्य में कई प्रसिद्ध शिल्पी थे। उनके बारा.राणा ने अनेक वास्तु भौर स्थापत्य के कार्य संपादित कराए । 'कीतिस्तम्म के निर्माण का कार्य सूत्रधार 'जता' और उसके दो पुत्र सूबधार नापा और पूजा ने १४४२ से १४४६ सक के समय में पूरा
१-श्री रत्नबन्द अनयाल, १५ वीं ससी में मेवाड़ के कुछ प्रसिद्ध सूत्रधार और स्थाति सम्राट ( Some Famous Sculptors & Architects of Mewar-15th. century A. D.) इण्डियन हिस्टॉरिकल क्वार्टरली. भाग २३ ४,दिसम्बर १६५७ पृ० ३२१-३३४