Book Title: Navpada Prakaran
Author(s): Devguptasuri
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
View full book text
________________
श्रेष्ठिदेवचन्द्रलालभाईजैनपुस्तकोडारग्रन्थाङ्के,श्रीमद् देवगुप्तसूरिप्रणीतं खोपझवृत्तियुतम्
चीनवपदप्रकरणम्.
GRECEGANGANAGARICROCRACANCIENCR-CAR
नत्वेच्छायोगतोऽयोगं, योगिगम्यं जिनेश्वरम् । नवभेदव्रतव्याख्या, प्रत्यात्मस्मृतये यते ॥१॥ नमिऊण वडमाणं मिच्छं सम्मं वयाई संलेहा । नवभेयाई वोच्छं सड्ढाणमणुग्गहटाए ॥१॥
नत्वा' प्रणम्य 'वर्द्धमानं' वमानस्वामिनं, वर्तमानतीर्थाधिपति वीरनाथमित्यर्थः, 'मिच्छं 'ति मिथ्यात्वमदेवादौ देवत्वादिबुद्धिरूपं विपरीतदर्शनं, 'संमं ति सम्यग्दर्शनं जीवादिपदार्थश्रद्धानरूपं 'वयाईति अणुवतगुणवतशिक्षापदवत [श्रावकधर्मद्वादशत्रत रूपाणि 'संलेह' ति संलेखना-मरणकालभाविनी क्रिया, 'नवभेयाई ति 'जारिसओ' इत्यादिगाथोक्तानि 'वोच्छ वक्ष्ये अभिधास्ये 'सड्ढाणं' ति भावभावकाणां, सम्यग्दर्शनषट्स्थानसम्घनानामित्यर्थः, 'अणुग्गहवाए' ति अनुग्रहार्थमिति, विशिष्टशुभाध्यवसायजननेनोत्कृष्टफलजननार्थमिति गाथासंक्षेपार्थः ॥१॥
पेक्षावतां प्रवृत्त्यर्थ, फलादित्रितयं स्फुटम् । मंगलं चैव शास्त्रादौ, वाच्यमिष्टार्थसिद्धये ॥१॥ फलं-प्रयोजनं अनंतरं परंपरं
GARLIGANGANAGARIKAASCIENCEKAR
Jain Education He
For Private Personal use only
w
.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138