Book Title: Navpada Prakaran
Author(s): Devguptasuri
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
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श्री नवपद प्रकरणे.
॥७॥
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साणे कप्पे ईसासिए ईसाणदेविदत्ताए उववनं जाणित्ता आमुरत्ताए ते अन्नमन्नं सहावेत्ता आगम्म तामलिसरीरंगं वामे पाए सुत्रेण निबंधिता तामलितीए नयरीए आकड्ढविकटिं करेमाणा उग्घोसणं करेंति के एस णं तामली बालतबस्सी अप
पत्थर दुरंतपन्तलक्ख सिरिहिरिपरिवज्जिए सवंगही बलिगे, तए णं ईसाणकप्पवासी देवा सामिसरीरं आकड्ढ विकटि करेमाणं पासिता साम विनवंति, वए णं से ईसाणे देविंदे ते सिमंतिए एयम सोच्चा निसम्म आमुरते तिवलियं भिउर्डि निलाडे साहद्दु सन्त्रओ समता अवलोकयति । तए णं ते बलिचंचारायहाणिवत्थव्वा बहवे देवा य देवीआ य छारीभूया इंगालीभूपा अनम आलिंगेति जाव भीया ईसाणे कप्पे देविंदं कुवि पासित्ता आणाज्ववायवयण निद्देसे वति नाइभुज्जोकरण पाए खामेति य । तर णं से ईसाणे देविंदे देवराया तेवलेलं पडसाers, पोत्ययवायणं सिद्धावयणगमणपूरणाइ, सम्मत्तउप्पत्ती, केवइयं कालं ठिई; (दो) सागरोवमाई साहियाई, से णं भंते! ईसाणे देविंदे देवलगाओ आउकखरगं ३ चुए कहि उववज्जिही?, गामा ! महाविदेसिज्झहि, विस्तरेण भगवत्यां ॥ मिथ्यात्वं नवभेदं समाप्तमिति । साम्प्रतं सम्यक्त नवप्रकारं प्रतिपादयन्नाहजियरागदोसमोहेहिं भासिय जमिह जिणवरिंदेहिं । तं चैव होइ त इय बुद्धी होइ सम्मत्तं ॥ १२ ॥
जितसगद्वेषमोहैः-अपगतमीत्यप्रीत्यज्ञानरूपैर्यद्भाषितं - जीवादिपदार्थ कदम्बकं सदेवमनुजायां पर्वदि प्रणीत, कैः ?जिनवरेन्द्रः, तत्र जिना:- अवध्यादिजिनास्तेषां वराः केवलिनः तेषामपि इन्द्राः - चतुस्त्रिंशदतिश प्रयुक्तास्तीर्थ करास्तेस्तदेव तत्त्व, उक्तं च " वीतरागा हि सर्वज्ञा, मिथ्या न ब्रुवते वचः । तस्मात्तेषां वचः सत्यं, तथ्यं भूतार्थदर्शनम् ॥ १ ॥ " नान्यत् कपिल कादिर गणीतं पंचविंशतितत्त्वरूपं तत्त्वमित्येवंरूपा या मतिः- बुद्धिः सा भवति जायते सम्यक्त्तत्वं सम्यक्त्वदर्शन
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स्वरूपम्
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