Book Title: Navpada Prakaran
Author(s): Devguptasuri
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

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Page 35
________________ Jain Education Int अद्धि जाया, चिता य-गंगदत्तो जइया य पव्वइओ तइया जइ अहं पव्वइओ हुंतो तो न एवं विडंबणं पावतो, असंजयअवियस्य परिवेसणाइ, एवं तस्स निव्विन्नस्स अन्नया कयाइ मुणिसुव्वयसामी बिहरमाणो समोसरिओ, तरणं कत्तिय - सेट्ठी एयाए कहाए लद्धडे समाणे बंदणवडियाए निग्गए, धम्मो सुओ, उट्ठेत्ता बंदर, भणइ य-जाव जे पुत्तं कुडुम्बे ठावेमि ताव तुज्झतिए अगाराओ अणगारियं पव्वयामि, अविग्धं देवाणुप्पिया ! मा पडिबंध करेह, कत्तियसेही भगवओ मुणिसुव्वयसामिस्स पासाओ निग्गच्छइ, जेणेव सए गिहे तेणेत्र उवागच्छइ, सुबहुं भत्तपाण उवक्खडावेइ, मित्तनाइनियगसंबन्धिपरियणं आमंतेत्ता भोयावेत्ता एवं वयासी - अहन्नं देवाणुप्पिया ! निव्विन्नकामभोगो पव्वइ इच्छामि, तुन्भे णं देवाणुपिया ! किं ववसिस्सह ?, तरणं तं निगम सहस्तं तं एवं वयासि - अम्हाणं देवाणुपिया ! के अन्ने आलंबणे ? तुज्झ मग्गं अणुलग्गिस्सामो, तए णं कचियसेट्टी तं नेगमद्वसहस्तं एवं वयासि - जइ एवं तो अप्पणो जेहपुत्ते कुटुंबे ठावेत्ता ममंतिए खिप्पामेव पाउन्भवह, तए णं नेगमट्टसहस्सं हट्टतु जेणेव सयाई गिहाई तेणेव उवागच्छति जेहपुत्ते कुडुम्बे ठावे, पुरिससहस्वाहिणी सीयासु दुरूति, जेणेव कत्तियसेद्वा जाव महया विन्देण हत्थिणारं नवरं मज्झंमज्झेण निगच्छंति, जेणेव सहसंबवणे उज्जाणे जेणेव मुणिमुव्वए अरहा तेणेत्र उवागच्छत्ति | आलितए णं भंते! लोए० तं इच्छामो णं भंते! सयमेव पन्त्रासयमेव मुंडावेउं सममेव सिक्खावि सपत्र आयारगोयरविगवेगवं जायामापावत्तियं धम्ममाइक्खिउँ, तर मुणिमुत्र अरहा तं गमने पञ्चावे, एवं देवाचिया ! विधि निसीनं जाव असि चैत्र अट्ठे खणमवि न पमाइयवं जाव अणसगं ताव सव्वं भाणिपव्वं, विस्तरभयान्न लिखितं, जाव सोहम्मे कप्पे सोहम्मवडेंसर For Private & Personal Use Only jainelibrary.org

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