Book Title: Navpada Prakaran
Author(s): Devguptasuri
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
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श्री नवपद प्रक०वृत्तो.
पीपधगुणे आनन्दवृत्त
॥४९॥
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अनुदजागरिया सुदक्खुजागरिया,तए ण ते समणोवासया भौया तत्या तसिया उबिगिया संजायभया संखं समणोवासयं भुज्जो भुजो खामंति, एगहा पसिणाई पुच्छंति अड्राइया संता जामेव दिसि पाउन्भूया तामेव दिसि पडिगया, भंते !त्ति गोयमे समगं. वंदइ जाव एवं वयासी-संखे णं भंते ! समणोवासए मुंडे भविता अगाराओ अणगारियं पव्वइहिइ ? गोयमा! नो इणढे समझे, संखे णं समणोवासए बहूई वासाई समणोवासयपरियागं पाउणिचा कालं किच्चा सोहम्मे कप्पे देवत्ताए उववजिहि, तआ चुओ महाविदेहे वासे सिशिहिद बुमिहिइ मुञ्चिहिइ सम्बदुक्खागत काहिए। विस्तरतो भगवत्याम् । आनन्दकथानकं द्वितीयम्
वाणियगामे आणंदगाहवइ रिद्धिवण्णणं तस्स । इड्ढिनिहाणपवित्थरच उचउकोडीहिं बारस उ ॥ १॥ भयवं तत्थागचाइ, दुइपलासम्मि चेइए बसइ । आणंदो य अणुव्वयगहणं कुणई तर्हि सिग्यं ॥ २॥ कोल्लागसभिवेसे तस्स अदरम्मि तस्स सयणजणो । पोसहसाला तत्थण्णया उ आणंदगमणं तु ॥ ३॥ सिवनंदभारियाते सद्धिं भोगा सदारसंतोस । तहय परिगहकोडी बारस हल पंच य सया उ॥४॥ सगडसहस्सं बोहित्यमाणं ४०० गोवग्गमाण किसिमाणं । उवभोगुब्बलणं खज्जगाइसागाण परिमाणं ॥५॥ पनरस बच्छर चिंता कुटुंबभारं च सयणवग्गं च । पुत्ते निक्खि विऊणं नाइकुलं जाइ पडिमट्ठा ॥६॥ कोल्लाए पडिमाओ समपिउं वीसमंमि वरिसंमि । संलेहणमाढवई ओहिनाणं च उप्पन्नं ॥ ७॥ सोहम्मं हिमवत समुदमज्झं च कोलुयं नरयं । भयवं तत्थ विहरइ नय सक्कइ तत्थ गंतुणं ॥८॥ भिक्खटाएँ पविठं गायमसामि च भणइ आणंदो । भयवं अणुगहेह जेण पर्वदामि ते पाए॥९॥ तं सोऊणं तत्थेव गोयमो गच्छए तो सिग्छ । वंदण ओही पुच्छा परिमाणे विप्पडीवत्ती ॥१०॥ आठोएही सो गायमेण आणंद तह य पडिभणई । किं तुझं किं मज्झं गोयम संका तओ जाया ॥११॥ भयवं गंतुं पुच्छइ
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॥४९॥
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