Book Title: Navpada Prakaran
Author(s): Devguptasuri
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
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समणोवासिया पोक्खलिसमणोवासयं आगच्छंतं पासइ आसणाओ अन्भुटुइ सत्तट्ठ पयाई अणुगच्छर बंदात, कहि णु साविए ! संखे समणोवासए ?, तए णं सा एवं वयासी- पोसहसालाए, तए णं पोक्खळी जेणेव पोसहसाला जेणेव संखसमणोवासए तेणेव वागए, ईरियाए पडिकम गमणागमणं आलोएइ २ एवं वयासी - आगच्छह तुम्भे देवाणुप्पिए, तर णं संखे समणोवासर एवं वयासी - नो खलु मे कप्पर तं विडलं असणपाणखाइमसाइमं आसाइत्तए, कप्पर मे एगाणियस्स पोसहसालाए पोसहं पडिजागरमाणस्स बिहरित्तए । तए णं से पोक्खली संखस्स वयणं सोचा निग्गर गिहाउ, जेणेव समणोवासया तेणेव उवागच्छर, २ एवं बयासी - नो खलु संखे समणोवासए हव्वमागच्छर, तं छंदेणं तुग्भे विडलं असणपाणखाइमसाइमं आसाएमाणा विहरह जाव विहरंति । तए णं संखस्स समणोवासयस्स पुवरत्तावरत्तकालसमयंसि सुदक्खुजागरियं जागरमाणस्स इमे एयारूवे अन्भतिथए समुपज्जित्था - नो खलु मे कप्पर पभाए समणं० अवदित्ता पोसहं पारितएत्ति, तओ पभाए जाए जाव सावत्थीं नयरी मज्झमज्झेण जेणेव को चेइए जेणेव समणे भयवं महावीरे तेणेव जाव पज्जुवासर, तेणेव ते समणोवासया पभायसमयंसि व्हाया कयबलिकम्मा जाष पज्जुवासंति, तर णं संखे समणोवासए समणं० वंदित्ता एवं वयासी-कोहवसट्टे णं भंते! जीवे किं बंधइ ? किं चिणइ ?, संखा ! कोहवसट्टे णं जीवे आजयवज्जाओ सत्त कम्मपयडीओ सिढिलबंधणबद्धाओ धणियबद्धाओ करेइ एवंजावलोहवसट्टेणंति । तए णं ते समयोवासया समणं॰ वंदित्ता एवं वयासी-हिज्जो णं भंते ! संखे समणोवासए हीलइ निंदर गरहइ, तए णं समणे भयवं महावीरे एवं वयासी-माणं अज्जो संखं समणोवासयं हीलेह निंदह, संखे णं समणोवासए पियधम्मे चैव ददधम्मे चैव सुदक्खुजागरियं जागरिए । तए णं गोयमे एवं वयासी-कविहा णं भंते ! जागरिया पण्णत्त ! ?, गोयमा ! तिविहा पण्णत्ता, तंजहा- बुद्धजागरिया
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