Book Title: Navpada Prakaran
Author(s): Devguptasuri
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

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Page 34
________________ श्री नवपद प्रकरणे. ॥ १० ॥ Jain Education In इत्थिणाउरे जियसत्तू राया, कत्तिए सेट्ठी नेगमसहस्सपढमासणिए, अड्डे दित्ते अपरिभूए आओगपओगसंपते बहुजणस्स संमए समणोवासए अहिगयजीवाजीवे उवलद्धपुन्नपावे आसवसंवरनिज्जर किरियाहिकरणबंधमोकुखकुसले असहिज्जदेवासुरकिन्नरकिंपुरिसमहोरगगंधव्वगाइएहिं निगथाओ पावयणाओ अणइकमणिज्जे, निग्गंथे पावयणे निस्तंकिए निक्कखिए निव्वितिगिच्छे, निग्गंथे पावयणे लट्ठे गहियट्ठे अभिगयट्ठे अट्ठिमिंजपेम्मा णुरागरत्ते, अयमाउसो ! निग्गंथे पावयणे अट्ठे परमट्ठे, सेसे अणट्ठे, ओसियफल हे अवंगुयदुवारे चित्तंतेउरपरघरपवेसे बहूहिं सीलव्वयगुणव्वय वेरमणपच्चक्खाणपोसहवासेहिं अप्पाणं भावेमाणो विहरइ, समणे य निग्गंथे फासुएसणिज्जेण असणपाणखाइमसाइमेणं वत्थपडिग्गहकंबलपायपुंछणेणं पीढफलग सेज्जासंथारएणं ओसहभेसज्जेण य पडिलामेमाणे विहरइ, अहमिचाउद सिउद्दिषुन्निमासिणीसु पडिपुन्नं पोसहं सम्म अणुपालेमाणे विहरइ । बीओ य गंगदत्तो तत्थेव नपरे परिवसई, सोऽवि अप्पणो परिवारस्स आहेवचं जाव विहरs, जाव मुणिमुन्वयसामीसमीवे पव्वइउं पुव्वामेव जाव महामुके कप्पे उववनो । तेणं कालेणं तेणं समएणं तत्थेव नयरे एको परिवायगो चिट्ठइ, सो य मासे मासे खमइ, तेण य सव्वलोगो आउट्टाविओ, सो जया हट्टमग्गेण नवरं पविसर मिच्छादिट्ठी सव्वलोगो आढाइ, नवरं कत्तियसेट्ठी न अब्भुडे, तओ सो पओसमावन्नो, अनया कयाइ राइणा (परिवायओ भोयणत्थं निमंतिओ, जइ कत्तिओ परिवेसेइ तो पारेमित्ति वुत्ते राया ) सयमेव गओ अभुडिओ कत्तिएण आसणेण निमंतिओ, ततो परिवायगवृत्तं तो सब्बो कहिओ, कत्ति पट्टणा भणिव-न वट्टए ममं एयं काउं, किंतु तुम्ह वासि वसामोत्ति जं भणह तं करेमोति, राइणा भणियं एवं होउ, तओ भोयणवेलाए आगओ, सेट्ठी परिवेसेइ, परिवेसिओ तं तज्जेइ अंगुलीए, कत्तियसेट्ठीस्स य For Private & Personal Use Only भंगो भावना कार्त्तिको दाहरण ॥ १० ॥ w.jainelibrary.org

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