Book Title: Navpada Prakaran
Author(s): Devguptasuri
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
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मधुमासमयपंयोम्बादि, आदिशब्दानवनीत्योलवटकरात्रियोजनादि, विरतिं कुर्यात्, द्वितीयगुणवतं उपभोगपरिभोगफ रिमाणं, अशनविलेपनवखादीनां परिमाणकरणलक्षणेऽत्र चातुर्भगिकं । रात्रिभोजनविषये कथानकम्राईभोयणपरिवज्जणम्मि दिवा इह भवंमि गुणा । परलोगे य तह चिय जह वमुदत्ताइयाणं च ॥१॥ उजेणी जण्णदत्तो जिणदासो वह य विण्डदत्तो यासावयकुलसंभूया ताण य दुहियाओ तिण्णेव ॥ २ ॥ जयसिारविज सिरीविय अवराई बालभावजिणधम्मे । अइगाढरागरत्ता पूबाइस निचमुक्युत्ता ॥३॥ ताण वयंसी माहणदुहिया वसुदत्तनामिया इट्टा । आसाढचाउमासे पभायकेलाऍ आयाया ॥ ४ ॥ ताहि भन्नइ गच्छह सहाणं अज अम्ह जिणपूया । साहुणिपासे अणुवयगहणं तो भन्नए तीए ॥५॥ किं तत्थ अम्ह गमणं न जुज्जए ? ताहि सा पुणो भणिया । कल्लाणि ! को विरोहो ? तुमपि गच्छाहि अम्ह समं ॥६॥ जिणभवणपइट्ठाओ पूधाईयं जिणाण काऊणं । साहुणिपासि बइट्ठा धम्मं सोऊण वसुमित्ता ॥ ७॥ सम्मत्तधरो जाया राई| भोयणवयंपि से कहियं । जबसिरिमाईहि य पुत्वगहिय उचारिय वयाइं ॥ ८ ॥ सगि गयाउ ताहे ससुरगिहाओ य आगओ तीए । मोयावगो वयंसिय पुच्छा गयबद्धणायउरे ॥९॥ ससुराईहि अभिनंदियाओ चिट्ठइ य किंपि कालंति । नत्ते अभुंजमाणा ससुरेणं भगए ताहे ॥१०॥ पुत्तिन अम्ह कुलकम जं निसिभोयण तहेव पसुभंसं । वज्जिज्जइ वेएमुंज बिहियं तं तु धम्माय ॥ ११ ॥ वसुमित्ताए भन्नइ हिंसा वेए विवज्जिया ताव । संझाइसु पियराणपि उस्सिर्ट रयणिदाणं तु ॥१२॥ ससुरेण आयरेणं भणिय जइ सासरेण ते कर्ज । वा मुंच आमई अण्णहा उ कजं न चेव तए ॥ १३॥ वसुमिता चितंति य जइ एवं जामि पेइयं | सहसा । तो कुललंकणमुकाइ नेमि एयाइ तत्वेव ॥ १४ ॥ वसुमित्ताए भणिया जस्स सगासा निविज्ज मे गहिया । तस्स सम
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