Book Title: Navpada Prakaran
Author(s): Devguptasuri
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
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पउगाए ॥ ३१॥ रायं पभणइ नवरं आगच्छउ एत्थ सो कुमारो भे । जेण पउणेमि सहसा आगयमेत्ते य रंग(वरग)मज्ञ।।३२॥ उहणेग पउगो जाओ सिरिदेविसंतएगं तु । जाआ कत्रा चउदस सह कुमरो राउलं च गो॥३३॥ रत्ना ताउवि परिणावियाउ भोगे य भुंजए ताहे । वयभंगकारणेगं कुट्ठो तासि समुप्पनो ॥ ३४ ॥ राया जाओ रोद्धो पच्छा देवाइसु भक्त्तिाग। मोक्खे गहणं होही एवं संखेवओ कहियं ॥ राईभोयणमंसाणि जाणि वजणे महापुण्णं । इह लोगे परलोगे सवपयत्तेण वज्जेहा ॥ विस्तरार्थो भगिनीवच्छलावसेयो, असनं--ओदनादि विलेपनं-चन्दनादि कुंकुमादि वस्त्राभरणपुष्पताम्बूलादीनां परिमाणकरणमिति गाथार्थः, तथा चोक्तं- हाण पिषण विलेवणवत्थाभरणे य बंभचेरे य । अभंगणि कुणमागं हुत्ता तंबोलपुफाई ॥ १ ॥ मज मंसं महु लोणियं च पंचुंबरीयफलनियमं । राईभोयण तह गजराई करगाइ मट्टी य ॥२॥ कुलबलमइगरूपत्तगसाहुकाराइ विश्वविउडगा । विरुवयवाहिविहीलगनगय मज्ज परिचयह ॥३॥ मंस पंचिदियवहविणिम्मियं तह पमंडपावलं । सुकरसरुहिरकलाल दुगंधि मुंव भपजगां ॥ ४॥ चउरिदियजीवाणेगदेहवसरुहिरमीसियमहम् । महुरसभक्खणयं चिक्क च पावं विवज्जेज्जा ॥ ५ ॥ नवगीयं तज्जोणियउप्पण्णविवण्णसत्तसंमीसं । अप्परिण विवजह होइ एपि भयजग ॥ ६॥ महु मज्जं च मंसं च, नवणोयं च भिक्खुगो। विगइओ न कप्पंति, तव्वण्णा तत्थ जंतुणो ॥ ७॥ उंबर वडं च पिप्पलं काउंबरि तह य पिप्परिफलाई । मज्ने हवंति जीवा खद्धा य कुणंति वयभंग ॥ ८॥ पल्लंकलट्टसागा मुग्गगयं आमगोरसुम्मोस । संसजर उ निपमा तपि य नियमा हु दोसा य ॥९॥ निच्च होन्ति दरिद्दा निच्चूसववज्जिया सिरिविहूणा । कुलबलरूवविहुणा निसिभोयणउज्जया जे उ ॥ १० ॥ साहारणा उ मूला
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