Book Title: Navpada Prakaran
Author(s): Devguptasuri
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

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Page 26
________________ श्रीनवपद प्रकरणे. ॥ ६॥ Jain Education I नाशः तथा जायत इति, पुनः प्रादुर्भावाभावेनेति । नवमं भावनाद्वारमधुना भावण जह तामलिणा इडीविसया पुणो अणसणं च । पुणरवि खोभणकाले लहुकम्माणं इमा मेरा ॥११॥ भाव्यत इति भावना - अनित्यत्वादिका, यथा तामलिश्रेष्ठिना ऋद्धिविषया अनित्यत्वभावना पुनरनशनकाले शरीरानित्यता चिंतिता, पुनरप्यसुरकुमार सम्बन्धिपरिकरक्षोभणसमये निदानाकरणादिना भावना भावितेति, लघुकर्म्मणां प्राणिनां मिथ्यादृष्टीनामपि भवभावना शक्ता भवतीति, उक्तंच -“प्राणेभ्योऽपि गुरुर्द्धर्म" इत्यादि, 'एक एव सुहृद्धर्म' इत्यादि । भावार्थः कथानकगम्यस्तच्चेदम् तेणं कालेणं तेणं समएणं तामलिती नामं नयरी होत्था, तत्थ णं तामली नाम मोरियवंसे गाहावई होत्था, अड्डे दित्ते अपरिभूए आओगसंपओग जाव बहुजणस्स संमए, तस्स णं तामलिस्स गाहावइस्स पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि कुटुंबजागरियं जागरमाणस्स इमे एयारूवे संकप्पे समुप्पज्जित्था - अस्थि मे कल्लाणफलवित्तिविसेसे जेणं अहं हिरन्नसुवन्नाइणा वड्ढामि, जाव मित्तनाइनियग संबंधिपरियणो आढाइ ताव ता मे सेयं कल्लं पाउपभायाए रयणीए जलते सुरिए सुबहु भोजायं वखडावेत्ता मित्तनाइनियगसंबंधिं चेव परियणं भोयावेत्ता तेसिमंतिए जिट्टपुत्तं कुटुम्बे ठावेत्ता तओ पच्छा जे इमे गंगाले वाणत्था तासा तेसिं मज्झे पाणामाए पव्वज्जाए पव्वइत्तए, पव्वइए य णं समाणे इमं एवारूवं अभिग्ग अforfoसामि, कप्प मे जावज्जीवाए छटुंछट्टेणं अणिकिखत्तेणं तवोकम्मेणं उटं बाहाओ परिज्झिय २ सुराभिमुहस्स आयाभूमी आयात्तिए, छट्ठक् खमणपारणगंसि य तामलित्तीए नयरीए उच्चनीयमज्झिमकुलाई घरसमुदाणस्स भिक्खायरियाए For Private & Personal Use Only भंगो भाव ना च ताम |लि कथा. ॥ ६ ॥ w.jainelibrary.org

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