Book Title: Navpada Prakaran
Author(s): Devguptasuri
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
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श्रीनवपद प्रकरणे.
॥५॥
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तस्स सिवस्स रायरिसिस्स इमे एयारूवे अन्भतिथए चिंतिए जाव संकप्पे समुप्पज्जित्था - अत्थि मे अइसेसेनाणदंसणे, तपणं हत्थिणाउरे नयरे गंतू गं तियचडकचच्चराइस एयमहं पयासेमि जाव कहे, अस्सि लोए जंबूदीवाइया दीवा लवणाइया सागरा सत्त, तेण परं बोच्छिन्ना दीवा य समुद्दा य । तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भयवं महावीरे सहसंबवणे उज्जाणे समोसढे, इमीसे कहाए लद्धट्ठा जाव परिसा पज्जुवासर, जाब बम्मकहा। “जह जीवा बुज्यंती मुञ्चंती जह य संकिलिस्सति । अट्टवसट्टोवगया संसारं परियडंति जहा ॥ १ ॥ " इत्यादि । तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतेवासी गोयमे बहुजणसदं सोचा संकिए जाव भत्तपाणं गहाय भगवओ समीवमागए भुत्तत्तरकालसमर्थसि पुच्छर, - भगवं ! सव्वं सिवरायरिसिचरिथं कहेइ, अहं पुण गोयमा ! एवमाक्खामि, अस्सि लोए असंखेज्जा दीवसमुद्दा, तेणं सा महइमहल्लिया महच्चपरिसा समणस्स० अंतिए एयम सोच्चा जेणेव सिवरायरिसी तेणेव उवागच्छर २ ता एवं वयासी, जनं सिवे शयरिसी विभंगनाणेण नाउं भासइ तनं मिच्छा, अहं पुण गोयमा ! एवं आइक्खामि जंबुडीवाइया सर्वभूरमणसागरावसाणा ता असंखेज्जा दीवसमुद्दा अढाइयउद्धारसागरसमयपमाणा, तणं से सिवरायरिसी एपमहं लोयाओ सोच्चा संकिए कंखिए बिइगिंछिए, संकियस्स य से अन्नाणर परिवडिए, न किंचि पेक्खइ दिद्विगोयराइयं, तओ तस्सेव सिवतावसस्स इमे एयारूवे अज्झथिए होत्था - पुवि पासामि इयाणि नो पासामि, तो गच्छामिण समणं भगवं महावीरं वंदित्ता एयमहं पुच्छित्तएत्तिकट्टु एयम संपहारेत्ता गमणाए संपढिए, जेणेव समणे भगवं महावीरे जाव पज्जुत्रासह, समणे ३ केवलिपन्नत्तं धम्मं कहेइ, तपणं से सिवे पडिबुद्धे समाणे एवं वयासी- इच्छामिणं भंते ! सयमेव पव्वाविडं सममेव मुंडाविडं सयमेव सिकरवाविडं सयमेव आयारगोयरविणयवेणइयं जाव धम्मं आइसिउं तपणं
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शिवर्षिकथानकम्
॥ ५॥
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