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हुई । मेरी दृष्टि में सिद्धान्त ग्रंथों की प्रमाणिकता सत्य तथ्य को प्रस्तुत करने से ही है । अतः सम्मतियों का ब्यौरा देना मैंने उचित नहीं समझा । यह महान आध्यात्मिक ग्रंथ है और विशेषार्थ देकर इसकी मौलिकता को द्विगुणित कर हमारे सम्पादक मण्डल ने कल्याणकारी कार्य किया है, परमपूज्य १०८ मुनिराज श्री सुधासागर जी ने जो अभिमत दिया है दो टूक सत्य और यथार्थ है।
सर्वप्रथम इसका प्रकाशन १९९६ पुन: १९९८ में श्री पं. हंसमुख जी धरियावाद द्वारा किया गया था वीतरागवाणी मासिक पत्रिका को समीक्षार्थ आई प्रति का अवलोकन कर मैं बहुत प्रमुदित हुआ तथा देश के यशस्वी विद्वान श्री पं. जवाहरलाल जी सिद्धान्ताचार्य से उदयपुर में मिला और उनके इस प्रौढ़ साहस तथा विलक्षण विद्वता के लिए मैंने बहुत धन्यवाद दिया । तथा भगवान महावीर स्वामी के २६ सौवीं जयंती पर प्रकाशित होने वाले २६ ग्रंथों की सूची में इस ग्रंथ को भी जोड़ने की स्वीकृति चाही तो उन्होंने अपने साथी सम्पादक मण्डल से परामर्श कर सहर्ष स्वीकृति दी मुझे लगता है कि प्रायक के घर घर में इस प्रति का पहुँचना सम्भव हो तथा इस प्रति के आधार पर स्वाध्याय करें तो सभी प्रकार की जिज्ञासाएं हल हो जाएंगी । इस ग्रंथ की १००० प्रतियाँ भगवान इसी बागी के रस में मोहीमति में प्रकाशित २६ ग्रंथों के साथ दातारों की ओर से वितरण हेत प्रकाशित की है तथा १००० प्रतियाँ लागत मूल्यों में बिक्री हेत वीतरागवाणी ट्रस्ट द्वारा छपाई गई है आशा है इस कल्याणकारी ग्रंथ से अनेक भव्यों का उपकार होगा।
टुस्ट ग्रंथमाला के नियामक सम्पादक पं. बर्द्धमानकुमार जी जैन सोरया डा. सर्वज्ञदेव जैन एवं डा. अरिहंतशरण जैन को धन्यवाद देंगे जिन्होंने बड़ी लगन तत्परता से जैन आगम के महानतम ग्रंथों के प्रकाशन का संकल्प इस ट्रस्ट द्वारा साकार किया है । बहिन श्रीमती फूली देवी सेटी एवं बहिन इन्द्रा देवी गंगवाल तथा उनकी सहयोगी महिला मण्डल की बहिनों तथा भाई रमेशचंद्र जी जैन मेरठ को धन्यवाद देंगे जिन्होंने प्रगवान महावीर स्वामी की २६ वीं जयंती की पुनीत स्मृति में इस ग्रंथ को प्रकाशित कराने सुयोग साकार किया । तथा वीतरागवाणी ट्रस्ट द्वारा लागत मूल्य पर ही इस आध्यात्म ग्रंथ को जन जन तक पहुंचाने की सफल आकांक्षा से इसकी अतिरिक्त प्रतियाँ प्रकाशित की ।
देश के शीर्षस्थ शास्त्रीय विद्वान सिद्धान्ताचार्य पं. जवाहरलाल जी सि. शा. उदयपुर तथा सम्पादक मण्डल के प्रतिभाशाली योग्य विद्वान पं. नीरज जी सतना, डॉ, चेतनप्रकाश जी पाटनी जोधपुर एवं पं. हंसमुख जी जैन धारिवाद को धन्यवाद देंगे जिन्होंने इस ग्रंथ के सम्पादन प्रकाशन का श्रेय प्राप्त का जैन समाज का महत् उपकार किया । मेरी भावना है कि इस मोक्षमार्ग प्रकाशक का ही घर-घर में वाचन हो और प्रावक आत्मकल्याण के लिए यथेष्ट लाभ प्राप्त करें । इस प्रकाशन में मैंने आचार्यकल्प पं. टोडरमल जी का गौरव परिचय श्री समाहार कर दिया है जिससे पाठकों को उनके पवित्र जीवन की झांकी भी देखने को मिल सके । मेरे द्वारा प्रकाशित इस ग्रंथ में एक अक्षर बिन्दु का भी परिवर्तन परिवर्द्धन नहीं किया गया । प्रधान सम्पादक जी द्वारा की गई शुद्धियों को इसमें संशोधित या टिप्पणी में आवश्यक प्रकरण समाहारित किए हैं। उन्हीं को यथास्थान रखा गया है । विद्वानों द्वारा इस संस्करण का अध्ययन करने के बाद जो भी सुझाव सम्मतियाँ हमें प्राप्त होगी और हमारे सम्पादक मण्डल ने उचित समझा तो हम अगले संस्करण में पूर्व सम्मतियाँ का पुनः प्रकाशन जोड़ देंगे ।
आत्म कल्याण की सद्भावना से इस ग्रंथ का यह तृतीय संस्करण और वीतरागवाणी दुस्ट टीकमगढ़ द्वारा प्रकाशित प्रथम संस्करण अपने सहृदयी विद्वानों पाठकों के लिए सादर समर्पित है 1 दीपावलि, ४.११.२००२
प्रतिष्ठाचार्य पं. विमलकुमार जैन सोरया एम.ए. शास्त्री
अध्यक्ष वीतरागवाणी दस्ट रजिस्टर्ड एवं प्रधान सम्पादक वीतरागवाणी मासिक टीकमगढ़