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इस संस्करण में संकलित-सम्पादित विशेषार्थों का औचित्य तर्क या परम्परा से नहीं समझाया जा सकता। अनाग्रही मन मे स्वाध्याय करके उसे समझा अवश्य जा सकता है। पूर्वाग्रह रहित होकर जो भी अध्येता इन सारे स्थलों का अवलोकन-मनन करेंगे, उन्हें प्रस्तुत विशेषार्थों का औचित्य भर नहीं, वरन् उनकी महत्ता और अनिवार्यता भी सहन ही समझ में आ जायेगी। पाठकों से हमारा अनुरोध है कि वे इस सत्प्रयास को इसी भावना से ग्रहण करें, किसी भी दृष्टि से उसे अन्यथा ग्रहण न करें। फिर भी चिन्तन का आकाश सबके लिए खुला है, सदा के लिए खुला है। .
हमें विश्वास है कि 'मोक्षमार्ग-प्रकाशक' का यह संस्करण इस ग्रन्थ की लोकप्रियता में अवश्य वृद्धि करेगा। फिर भी यदि किसी भव्यात्मा को हमारे इस प्रयत्न से किसी प्रकार का मानसिक क्लेश पहुँचा हो तो उसके लिए हम उनसे सविनय क्षमा चाहते हैं। स्वयं पण्डित टोडरमलजी लिखते हैं
'सावधानी करते भी कहीं सूक्ष्म अर्थ का अन्यथा वर्णन होय जाय तो विशेष बुद्धिमान होइ सो सँवारि करि शुद्ध करियो, यह मेरी प्रार्थना है।'' (पृष्ठ १३)
आशा है, प्रबुद्ध पाठकों के बीच, प्रखर स्वाध्यायियों के बीच इस संस्करण का सम्मान होगा। इसके माध्यम से पण्डित टोडरमलजी के इस कृतित्व को अधिक सार्थकता पूर्वक पढ़ा समझा जायेगा और अल्पकाल में ही इस संस्करण की पुनरावृत्ति करने की आवश्यकता पड़ेगी।
__ इस संस्करण के सम्बन्ध में पूज्य आचार्यों, मुनिराजों, आर्यिकाओं और विद्वानों ने अपने आशीर्वाद/अभिमत/अनुशंसा/प्रतिक्रिया भेजकर हमें अनुगृहीत किया है, एतदर्थ हम उनके हृदय से आभारी हैं।
ग्रन्थ के सम्पादन हेतु पं. टोडरमलजी की ही हस्तलिखित मूल प्रति की फोटोस्टेट कॉपी विद्वद्वर श्री राजमलजी जैन, भोपाल ने बड़ी कृपा करके हमें भेजी थी। एतदर्थ हम उनके आभारी
ग्रन्थ-प्रकाशन में समर्पित भाव से सहयोग करने वाले सभी सहयोगी हमारे हार्दिक धन्यवाद के पात्र हैं। अर्थ-सहयोग प्रदान करने वाले सभी उदार दातारों के हम अतिशय आभारी हैं।
पण्डित नीरज जैन, सतना डॉ. चेतनप्रकाश पाटनी, जोधपुर पण्डित हंसमुख जैन, धरियावद