Book Title: Kuvalaymala Kaha Ka Sanskritik Adhyayan
Author(s): Prem Suman Jain
Publisher: Prakrit Jain Shastra evam Ahimsa Shodh Samsthan
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कुवलयमालाकहा का साहित्यिक स्वरूप (पृ. ३०)। कुवलयमाला को भी अपने अतीत की सारी स्मृति हो आती है (१६३.१६) ।
कालमिश्रण :-कथाकार कथाओं में रोचकता की वृद्धि के लिए भूत, वर्तमान और भविष्यत् इन तीनों कालों का तथा कहीं दो कालों का सुन्दर मिश्रण करता है । प्राकृत कथा साहित्य में इस स्थापत्य का बहुत प्रयोग हुआ है। कुव० में कथाकार ने अतीत, वर्तमान और भविष्य का इतना सुन्दर सामंजस्य स्थापित किया है कि पाठक कथाओं से ऊबता नहीं है। कुवलयमाला के पात्रों के प्रथम भवों की कथा अतीत में कही जाती है, वर्तमान में दूसरे भव की और अगले दो भवों की कथा भविष्यमिश्रित वर्तमान में उपस्थित की गयी है।
__ कथोत्थप्ररोह शिल्प :-'केले के स्तम्भ की परत के समान जहाँ एक कथा से दूसरी कथा और दूसरी कथा से तीसरी कथा निकलती जाय तथा वट के प्ररोह के समान शाखा पर शाखा फूटती जाय, वहाँ इस शिल्प को मानते हैं।' कुव० में इसका कलात्मक प्रयोग हुआ है । क्रोध, मान, माया, लोभ और मोह के प्रथम जन्म की कथाएँ, उनके प्रतिफल स्वरूप अन्य पाँच कथाएँ तथा बीच-बीच में अनेक छोटी-छोटी कथाएँ इस ढंग से गुम्फित हैं कि उनका सिलसिला ही समाप्त नहीं होता, जब तक मुख्य कथा समाप्त नहीं हो जाती । इस तरह की कुल २६ कथाएँ कुव० में वर्णित हैं। कथोत्थप्ररोह-शिल्प का प्रयोग कुवलयमाला में मात्र किस्सागोई का सूचक नहीं है, अपितु जीवन के शाश्वत तथ्यों और सत्यों की वह अभिव्यंजना करता है।
सोद्देश्यता:-कुवलयमाला की कथा एक निश्चित उद्देश्य को लेकर अग्रसर होती है। वह है, मनुष्य की विकारात्मक प्रवृत्तिओं का सुन्दररूपेण पर्यवसान । सोद्देश्यता के कारण ग्रन्थ के कथाप्रवाह में कोई रुकावट नहीं आती।
अन्यापदेशिकता :-'कथाकार किसी बात को स्वयं न कहकर व्यंग्य या अनुमिति द्वारा उसे प्रकट करने के लिए इस स्थापत्य का प्रयोग करता है।' कुव० में अपुत्री राजा दृढ़वर्मन् को कुमार महेन्द्र की प्राप्ति, पुत्र-प्राप्ति के लिए संकेत है। इसी प्रकार कुमार कुवलयचन्द्र का घोड़े द्वारा अपहरण भी उसके भावी जीवन की घटनाओं की अभिव्यंजना करता है। आगे भी उदद्योतनसरि ने सामुद्रिक यात्राओं का वर्णन प्रस्तुत कर यह सूचित कर दिया है कि क्रोधभट आदि पाँचों व्यक्तिओं के जीव इस संसार समुद्र में यात्रा कर रहे हैं। समुद्रयात्रा में जब जहाज टूट जाता है तो मुश्किल से यात्री फलक आदि के सहारे किनारे लगता है, उसी प्रकार उन सबके जीव कई भवों को धारण कर अन्त में मुक्ति को प्राप्त होते हैं।
___ वर्णन-क्षमता :-'निर्लिप्तभाव से कथा का वर्णन करना और वर्णनों में एकरसता या नीरसता को नहीं आने देना वर्णन-क्षमता में परिगणित है।'