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आचार्य कुंदकुंददेव
कन्नड भाषा की मधुरता व मृदुता हिंदी भाषा में लाना कैसे संभव है ? क्योंकि प्रत्येक भाषा की अपनी-अपनी विशेषता होती है। लेखक का भाषाविषयक साहित्यिक, लालित्य, उपमादि, निसर्ग सौंदर्य का वर्णन सर्वांशरूप से हिंदी में लाया ही है ऐसा लिखने के लिए मैं असमर्थ हूँ | तथापि ऐतिहासिक प्रामाणिकता, तात्त्विक एकरूपता और जिनवाणी का मूल अभिधेय वीतरागंता, ऐसे मूलभूत प्राणभूत विषय में कमी न आवे ऐसा पूर्ण प्रयास आरंभ से अंत तक मैने किया है । वाचक स्वयमेव रसास्वादन के साथ निर्णय करे ।
दि. २५/ १२ / १६६०
ब्र. यशपाल जैन एम. ए. जयपुर.
श्री भरतेश्र्वर पाटील एम. ए. मुरगुंडी, जि. बेलगांव,
(कर्नाटक)