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... आचार्य कुंदकुंददेव आचार्यदेव के प्रायः सभी ग्रन्थ पाहुड नामान्त हैं । जैसे-समयपाहुड़, सूत्रपाहुड़, मोक्ख- पाहुड़, भावपाहुड़ आदि । “पाहुड़" का संस्कृत रूप प्रामृत होता है । प्राभृत का अर्थ है भेंट | इसी अर्थ को लक्ष्य में रखकर आचार्य जयसेन ने समयसार की अपनी टीका में समयप्रामृत का अर्थ अग्रांकित प्रकार किया है। __यथा कोऽपि देवदत्तः राजदर्शनार्थ किंचित् सारभूतं वस्तु राज्ञे ददाति तत् प्रामृतं भण्यते । तथा परमात्माराधक पुरुषस्य निर्दोषपरमात्म-राजदर्शनार्थमिदमपि शास्त्रं प्रामृतम् । ___ अर्थात् जैसे देवदत्त नामक कोई व्यक्ति राजा को दर्शन करने के लिए /राजा से मिलने के लिए सारभूत वस्तु राजा को भेंट देता है, उसे प्राभृत-भेंट कहते हैं । उसी प्रकार परमात्मा के आराधक पुरुष के लिए निर्दोष परमात्मा रूपी राजा का दर्शन करने के लिए यह शास्त्र भी प्राभृत है । “मानो ये ग्रन्थाधिराज भव्य जीवों के लिए आचार्य कुन्दकुन्द की भेंट हैं।"
प्रामृत का आगमिक अर्थ यतिवृषभ ने अपने चूर्णि सूत्रों में इसप्रकार किया है:
जह्मा पदेहिं पुदं (फुड) तझा पाहुई जो पदों से स्फुट अर्थात् व्यक्त है. इसलिए वह पाहुड़ कहलाता
“जयधवला" नामक अपनी टीका में आचार्य वीरसेन ने प्रामृत का स्पष्टीकरण इस प्रकार किया है:१. कषायपाहुड़ भाग-१, पृष्ठ ३२६ २. कषायपाहुड़ भाग-१, पृष्ठ ३२५
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