Book Title: Kundakundadeva Acharya
Author(s): M B Patil, Yashpal Jain, Bhartesh Patil
Publisher: Digambar Jain Trust

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Page 112
________________ ११४ आचार्य कुंदकुंददेव चन्द्रनन्दि की गुरु परम्परा में गुणचन्द्र, अभयनन्दि, शीलभद्र, जयनन्दि, गुणनन्दि, चन्द्रनन्दि आदि महामुनियों के नामों का उल्लेख है। इससे मूलसंघ की परम्परा की बहु प्राचीनता सिद्ध होती है और आचार्य कुन्दकुन्ददेव ई. सं. पूर्व ही हुए थे; इसकी पुष्टि होती है। उसी प्रकार अभिधान राजेन्द्रकोश में आचार्य कुन्दकुन्द का परिचय देते हुए लिखा है: कुन्दकुन्द पु. स्वनामख्यातो दिगम्बराचार्य भद्रबाहुर्गुप्तिगुप्तो माघनन्दिर्जिनचन्द्रः कुन्दकुन्दाचार्य इति तत्पट्टावल्यां शिष्यपरम्परा अयमाचार्यो-विक्रम सं. ४६ वर्षे वर्तमान आसीत् । अस्यैव वक्रग्रीवः एलाचार्य: गृद्धपिछ: मदननन्दि दिव्यपराणि नामानि । __ -अभिधान राजेन्द्रकोश ३-५५७ विक्रम संवत् ४६ में आचार्य कुन्दकुन्द की विद्यमानता को स्वीकारा है और उनके पाँचों नामों का उल्लेख भी किया गया है। मात्र पद्मनन्दि के स्थान पर मदननन्दि कहा गया है । अत: निर्विवाद रूप से ज्ञात होता है कि आचार्य कुन्दकुन्द ई. सं. पूर्व ही हुए थे। विकारविजयी, युगपुरुष आचार्य कुन्दकुन्द केवली सदृश कर्तव्य निभाकर प्रसिद्ध मंगलाचरण श्लोक में तृतीय स्थान पर विराजमान हो गये । ८५ वर्ष उनके सुदीर्घ साधु जीवन का आचार्य परम्परा में एकमेवाद्वितीय और अत्यन्त गौरवास्पद स्थान है। इस कालावधि में आचार्यश्री ने दक्षिण और उत्तर भारत में अनेक बार विहार करके

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