Book Title: Kundakundadeva Acharya
Author(s): M B Patil, Yashpal Jain, Bhartesh Patil
Publisher: Digambar Jain Trust

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Page 116
________________ गाजाही देखा जाय तो आचार्य देव नारा सचिन सर्व ही शास्त्र परमोपकारी हैं। जनतामपाइ मन्थ लाख योनिको मुजाडोकर शावत और सुखमय सिद्धालुग में अचंत कालमर्यत विराजमान होने के लिए प्रझेकजजीव को भेडस्वरूप है. ऐसा अभिप्राय किसी को भी अतिशयोक्ति वा असहम नहीं लाना चाहिए इस तरह निर्णय करके सच्चे सुख की इच्छा रखनेवालों को आचार्य रचित वर्तमान में रुपल बाहामाङ्गादि ग्रन्थों का आत्मसन्मुख होकर अध्ययन करना-परमावश्यक गोनवजीवन का आध,एवं अनिवार्य कर्तव्य भासही P By His is TIME ITS प्रणा कि पंचास्तिकाया95F HE PRIME RIPE APPF प्राइसाराभा का साला माकाजाम अंतिथकाय समयमाङ है। पाहुङ्गामातामाभूत शब्दाको गौशा करते हुएउपंचास्तिकासनामाही विशेष प्रसिद्ध गइस शास्त्र मुख्यारीतिसेल्जीवापुद्गलः सह अधर्म औरशाँइ पाँच अस्तिकाय द्रयों का वर्णना के योंकि वोद्रव्य बहुप्रदेशी। ये सभीएद्रव्य लोकाकाश में स्थित हैं फिर भी अपने अपने स्वभाव को नहीं छोड़ते तपसे सित्ता के स्वरूप को समझाकरीजीविमिन्नापायों को प्राप्त होता है उसोद्रव्याँकहामाया है। पांच द्रव्यों का और द्रव्य तथा गुणों के आपसा परस्पर सम्बन्धिर कावर्णन करतीहुए सप्ताभंगों का निरूपण भी किया है शाअसत् कार उत्पाद (जन्म)ीनिहींहोता और नासत की विनाशा इस सनातनसिद्धान्त कौस्विीकार करते हुए सत् स्वरूप पदार्थका विनाश नहीं होता है आर अति वस्तु का उत्पादी भी नहीं होता यही R

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