Book Title: Kundakundadeva Acharya
Author(s): M B Patil, Yashpal Jain, Bhartesh Patil
Publisher: Digambar Jain Trust

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Page 128
________________ - पई आचार्य कुंदकुंद जालिंगपाहुड़ला इसमेगाथाय है, जिनमें मुनिलिंग की अर्थात् मोक्षमार्गको चर्चा की गयी हग रत्नत्रय रूप धर्म से मुनिलिंग होता है अर्थातामुनिलिंग की सार्थकता रत्नत्रयरूपधर्म से ही हैं। केवल मुनिलिग धारण करने से धर्म नहीं होता । जो निन्य होकर भी स्त्रीसमूह के प्रति रांगभाव रखता है और अन्यों को दोष सहित बतलाती है, वह तियच है, मुनि नहीं जो संवैज्ञ द्वारा प्रतिपादित धर्म का पालन करता है, वह मुनि है। गार निकाली नि insh जोलपाहुँड इसमें माथाय हा प्रारंभ में मैंगवान महावीर AAPSPuja कि शील का महत्व,बतलाते हुए कहा है कि ज्ञान के साथं शील का र जी Rajार कोई विरोध नहीं है। परन्तु शील रहित ज्ञान विषय-वासना से नष्ट हा जाता है जो ज्ञान प्राप्ति करके भी विषयों में निसान है । विरक्त होते है वे भवमय का उच्छेद करते हैं। चारित्र रहित ज्ञान दर्शनरहित मुनि लिंग ग्रहण और संयम रहित तुपस्या ये सब "पालि IPEDIETYशाया 30P -: छापति बारस अवेकवा इसमें शाओं द्वारा वैराग्योत्पादक बारह अनुप्रेक्षाओंभावनाओं का सुन्दा वर्णन किया है। अनुमक ईक्षा F अनुप्रेक्षा का व्युत्पत्तिपरक अर्थ है पदार्थ के स्वरूप को सम्यक् प्रकार से-पुत्र नदेखना आचाईदेवने इन भावनाओं केर दारासमानों के वैराग्यभाव को पुष्ट किया है ।मन्तअपनेलाही का भी उल्लेख किया हैगा IP IF MP काज की IPIP.. २.SH 1 मा. TOP AMA हा जात TRE चतगात TO iPM ThaisPLIFri त करका Pण

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