Book Title: Kundakundadeva Acharya
Author(s): M B Patil, Yashpal Jain, Bhartesh Patil
Publisher: Digambar Jain Trust

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Page 110
________________ ११२ आचार्य कुंदकुंददेव काडम्मा और श्री नागप्पा हेगड़े ने सुगम रास्ता बनवा दिया, जिससे अन्य भक्तों के लिए भी भक्ति के माध्यम का सुअवसर प्राप्त हो गया। समी लोग इस कुन्दाद्रि की पवित्र भूमि के दर्शन से उस अमण शिरोमणि के दिव्य जीवन की स्मृति से पुनीत होकर अपने जन्म को सार्थक करें -यही श्रेयस्कर है। आचार्य कुन्दकुन्द अत्यन्त प्रसिद्ध एवं सर्वमान्य आचार्य थे। इस संबंध में अनेक उल्लेख शिलालेखों में तथा उत्तरकालवर्ती ग्रंथों में देखने को मिलते हैं। उनमें से कुछ उदाहरण यहाँ दिये जाते हैं : श्रीमती वर्धमानस्य वर्धमानस्य शासने । . श्रीकोण्डकुन्दनामाभून्मूलंसंघाग्रणीर्गणी || . -प्रवणबेलगोल शिलालेख-५५/६६./४६२ - तदीयवंशाकरतः प्रसिद्धादभूददोषा यंतिरत्नमालां । बर्मों यदन्तर्माणिवन्मुनीन्द्रस्य कुण्डकुन्दोदितचण्डदण्ड || -श्रवणबेलगोल शिलालेख -१०८ . कवित्वनलिनीग्रामनिबोधन सुधाघृणिम् । वन्द्यैर्वन्धमहं वन्दे कुन्दकुन्दामिदं मुनिम् ॥ -विद्यानन्दकृत सुदर्शन चरित्र असाध्यधुसदा सहायंमसमं गत्वा विदेहं जवा दद्राक्षीत् किल केवलक्षणमिनं द्योतक्षमध्यक्षतः । नीनामानन्दामिद सुदर्शन

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