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आचार्य कुंदकुंददेव पश्चात् प्रतिदिन की भाँति स्वाध्याय प्रारंभ हुआ। जीवतत्व का प्रकरण चल रहा था । योगानुयोग से आज विषय सुलभ रीति से स्पष्ट हुआ। केवली भगवान द्वारा प्रतिपादित भगवान आत्मा की बात सचमुच अलौकिक ही है-ऐसा दोनों को हृदय से जंचा।
स्वाध्याय समाप्त करके शांतला अपने कक्ष में जाकर आसन पर बैठ गई | सोचने लगी-मुझे मेरा पुण्योदय ही समझना चाहिए कि योग्य पति का संयोग मिला, अन्यथा जीवन दुःखद हो जाता।
आज शांतला के मुख पर एक अपूर्व कांति झलक रही थी और अलंकार भी विशेषरूप से शोभायमान हो रहे थे । गुणकीर्ति भी सहजमाव से शांतला के कक्ष में आकर बैठ गये । मधुर हास्य से शान्तला ने गुणकीर्ति का स्वाभाविक स्वागत किया और प्रमोद व्यक्त करते हुए कहने लगी “हे प्राणप्रिय ! मैंने आज अर्धरात्रि के पश्चात् दो स्वप्न देखे हैं ।" तदनन्तर शान्तला ने उन स्वप्नों का सानंद सविस्तार वर्णन किया और जिज्ञासा से फल पूछा।
गुणकीर्ति कुछ समय पर्यन्त किंचित् गंभीर हुए । निर्णय मात्र के लिए आँखें बंद करके कुछ विचार किया और पत्नी की ओर देखते हुए स्वप्न फल कहना प्रारंभ किया । “हे प्रिये ! ये स्वप्न हमारी बहुत दिनों की इच्छा को पूरी करने वाले हैं। धवल वृषभ का प्रवेश धर्म दिवाकर स्वरूप पुण्यवान जीव तुम्हारे गर्भ में आया है-यह सूचित करता है | और चंद्रमा की चाँदनी यह स्पष्ट करती है कि उस धर्म-दिवाकर के उपदेश से भव्य जीवों को सुख-शांति का मार्ग प्राप्त होगा।
स्वप्नश्रवण से प्रमुदिता शान्तला अपने पति से निवेदन करती है । प्राणनाथ ! मुझे पेनगोंडे जाकर पार्श्वनाथ भगवान के दर्शन