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आचार्य कुंदकुंददेव उनका उस दिशा में कुछ भी प्रयास नहीं रहता । आजकल हम-आप भी अपने बालकों का जन्मदिन मनाते हैं; परन्तु जन्म दिन मनाने में कौन-सी गम्भीर बात-मर्म छिपी है-क्या हमने इसके संबंध में थोड़ा सा भी कभी विचार किया ? विचार किया होता तो ऐसे अज्ञानमय कार्य हम कभी नहीं करते । आपके मन में प्रश्न होना स्वाभाविक है कि क्या जन्म दिन मनाना अज्ञानमयकार्य है ? इस विषय में हमें कुछ सोचना जरूरी है। ___ हम किसका जन्म-दिन मना रहे हैं ? चैतन्यस्वरूपी आत्मा का अथवा चैतन्यरहित-जड़ पुद्गलमय शरीर का ? प्रथम हम यह देखें-सोचें कि चैतन्यस्वरूपी आत्मा के जन्म-मरण होते हैं या नहीं? आत्मा के जन्म-मरण नहीं होते: क्योंकि आत्मा अनादि अनंत है, फिर उसे जन्म-मरण कैसे ? अत: हम जड़-पुद्गलस्वरूपी शरीर
का ही जन्म दिन मनाते हैं, यह निश्चित हुआ। ___ ज्ञानशून्य, रक्त-रुधिरादि एवम् स्पर्शादि गुणों सहित, जिस शरीर का आत्मा के साथ अंतिम संयोग हो और अशरीरी पद की साधना की जावे, ऐसे शरीर का गौरव, सत्कार, सन्मान, बहुमान करना चाहिए अर्थात् जन्मदिन मनाना चाहिए।
तात्विक दृष्टिवालों के विचार नियम से उदार, उदात्त, सुखस्वरूप व सुखदायक ही होते हैं :- हमारे द्वारा स्वीकृत पदार्थ अच्छा हो या बुरा, उसको छोड़ते समय उसकी निंदा न करके सम्मान देकर छोड़ देना चाहिए । दुनिया में भी सामान्य लोगों में यह रूढ़ि है कि सज्जनों की संगति धन खर्च करके करना चाहिए और दुर्जनों की संगति दुर्जन को धन देकर सदैव के लिए छोड़नी चाहिए।