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आचार्य कुंदकुंददेव
प्राचीन, अतिदीर्घ, पवित्र चरणपादुकाएं हैं । इस परम पवित्र चरणचिन्हों पर ईसवी सन् १६७० में मण्डप की रचना हुई है। इन चरण पादुकाओं के दक्षिण दिशा में लगभग सौ सौ फीट की दूरी पर दो प्राकृतिक गुफाएं हैं, जिनमें चौकाकार बड़ी शिलाएँ हैं ।
गुफा का अन्तर्भाग देखते ही इसी शिलाखण्ड पर बैठकर आचार्य पुंगव ने तपस्या की थी- यह विषय स्पष्ट समझ में आ जाता है । इस गुफा में एक साथ एक ही मनुष्य प्रवेश कर सकता है, वह भी नमकर | गुफा के अन्दर भी एक ही व्यक्ति तपस्या- ध्यान के लिए बैठ सकता है । गुफा के प्रवेश द्वार के पास एक बड़ी चट्टान होने से गुफा के पास जाने पर भी यहाँ गुफा है - ऐसा ज्ञान नहीं हो पाता। आसपास का परिसर, गुफा का अन्तर भाग देखकर ध्यान के लिए सर्वोत्तम जगह है - ऐसा मनोमन - हार्दिक विचार आये बिना नहीं रहता।
पर्वत की पश्चिम दिशा में पोन्नूर गांव है। यह गांव पहाड़ से पाँच किलोमीटर दूरी पर है । पर्वत की पूर्व दिशा से ही पर्वत पर चढ़ना-उतरना संभव है। पश्चिम दिशा से पहाड़ पर उतरकर पोन्नूर पहुंचना शक्य नहीं है, क्योंकि रास्ता नहीं है । पौन्नूर गांव में श्री पार्श्वनाथ दिगम्बर जैन मन्दिर है। मंदिर में बारहवीं शताब्दी का एक शिलालेख है । इस शिलालेख में “श्री पार्श्वनाथ जिनबिम्ब का पौन्नूर पर्वत पर ले जाकर अभिषेक पूजा की है" ऐसा उल्लेख मिलता है । दूसरा सतरहवीं शताब्दी का शिलालेख - उसमें “आदिनाथ कनकमलै आलवा” के मंदिर का जीर्णोद्धार किया गया है- ऐसा उत्कीर्ण किया हुआ है । ५०० वर्ष पूर्व पर्वत पर महाभिषेक हुआ था ऐसा भाव एक अन्य शिलालेख में स्पष्ट मिलता है।