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आचार्य कुंदकुंददेव वापस आने के पूर्व ही आचार्यदेव आकाश से उतर कर पौन्नूर पर्वत पर आ गये । उसी समय उदयाचल पर बालभास्कर उदित हुए । इस ज्ञानभास्कर के धवल किरणों का प्रतिस्पर्धी बनकर तुझे इन रक्त किरणों का उगलना शोभा नहीं देता-ऐसा जानकर उस निर्मल नील गगन में छिपे हुए काले मेघखण्ड ने तत्काल बालभास्कर को आवृत्त कर दिया। ___ आचार्य भगवान उस दिन विदेह क्षेत्र से भरतक्षेत्र लौटे थे । अत: इस मधुर स्मृति प्रीत्यर्थ उस दिन सभी ने सर्वत्र महोत्सव मनाया । हुंडाअवसर्पिणी के निकृष्ट इस पंचमकाल में जन्म लेकर भी तीर्थंकर भगवान का साक्षात सानिध्य प्राप्त कर दर्शन कर दिव्यध्वनि का लाभ लिया । इस कारण चतुर्विध संघ ने आचार्यदेव को “कलिकालसर्वज्ञ”, उपाधि से विभूषित करके अपने को गौरवान्वित माना।
आचार्यदेव जिस पर्वत से विदेहक्षेत्र गये थे और वहाँ से लौटकर जिस पर्वत पर आये थे. तपस्या की थी, शास्त्र-रचना की थी वह पौन्नूर पर्वत वर्तमान समय में तमिलनाड प्रान्त में है। यह पर्वत मद्रास से १३० किलोमीटर दूरी पर और वन्देवास गांव से केवल 8 किलोमीटर अंतर पर है | पर्वत के पास ही पोन्नुर पर्वत की सीढ़ियाँ प्रारंभ होती हैं । बस अड्डे से ५० फीट की दूरी पर ही पोन्नुर पर्वत की सीढियाँ प्रारंभ होती हैं। नीचे जमीन से पर्वत पर पहुंचने के लिए कुल ३२५ सीढ़ियाँ हैं। __ पर्वत शिखर पर दो हजार वर्ष से भी पुराना चम्पक नाम का वृक्ष है । इस वृक्ष के पास ही आचार्य श्री कुन्दकुन्द देव की अत्यन्त