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आचार्य कुंदकुंददेव स्वाध्याय व तत्वचर्चा के बाद गुणकीर्ति ने चार वैद्यों को बुलाया वे चारों ही वैद्य वैद्यक व्यवसाय में अनुभवी, लोक में प्रसिद्ध, सबके श्रद्धा-पात्र और महामेधावी थे । इनको ज्योतिषज्ञान भी था । इन चारों वैद्यों ने बालक का आरोग्यविषयक पूरा तथा सूक्ष्म परीक्षण अपनी-अपनी बुद्धि व पूर्वानुभव के अनुसार किया, आपस में देरतक चर्चा भी की । और अन्त में निर्णयात्मक रीति से सेठजी से कहा :_ “आदरणीय नगरसेठ ! इस भाग्यवान बालक में शारीरिक स्वास्थ्य की दृष्टि से कोई न्यूनता-कमी नहीं है । रोग होने का तो प्रश्न ही नहीं है। शरीर पूर्ण स्वस्थ है। इस बालक को कुछ तकलीफ भी नहीं है। इसे नींद बहुत कम आती है-बहुत कम समय सोता है ऐसी आपकी खास शिकायत है | आपका कहना तो बिलकुल सही है। बुद्धि की विशेष तीक्ष्णता के कारण उसे नींद कम आना स्वाभाविक ही है । इसकारण आपको चिन्ता करने की कुछ आवश्यकता नहीं है । अल्प निद्रा के कारण बालक के स्वास्थ्य पर किंचितमात्र भी अनिष्ट परिणाम नहीं है । इस उमर में अब वह जितना सोता है उतनी नींद उसे पर्याप्त है | आठ प्रहर में एक अथवा डेढ़ प्रहर सोयेगा तो भी बहुत है । आप निश्चित रहिएगा।"
भो श्रेष्ठीवर ! इस भूमण्डल पर आप जैसा भाग्यशाली और कोई दिखाई नहीं देता । वैद्यक शास्त्र की रचना काल से लेकर अभी तक इस प्रकार की विचक्षण बुद्धिवाला जीव नहीं जन्मा है । इस प्रकार असामान्य बुद्धिमान शिशु को जन्म देकर आपने विश्व पर महान उपकार किया है । इस बालक के उपकार का स्मरण विश्व “यावत्चंद्र दिवाकरौ" तक रखेगा । इस लोकोत्तर महापुरूष का