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आचार्य कुंदकुंददेव
गया | सर्व शारीरिक चेष्टायें बंद हो गई, आँखे मात्र खुली थीं । मानो शरीर आदि सर्व परद्रव्यों को भूल गया हो । माता शान्तला भी गीत की विषयवस्तु के साथ तन्मय होकर लोरियाँ प्रभातीराग में गा रही थीं । इस आवाज को सुनकर ही गुणकीर्ति जाग गये और पुत्ररत्न का मुखावलोकन करने के लिए आये । पति के आगमन से शान्तलादेवी की समाधि भग्न हो गयी | उसने हास्यवदन से पति का स्वागत किया । गुणकीर्ति ने भी हँसते हुए स्वागत को स्वीकार किया और बोले:
_ “शान्तला ! इसप्रकार दिन-रात जागने से शारीरिक स्वास्थ्य का क्या होगा कभी सोचा भी है ? बच्चे का थोड़ा सेवाकार्य धायों को भी करने दो । हरसमय हरकार्य स्वयं ही करने की खोटी आदत अब तो थोड़ी कम करो।" . ___ “नाथ ! तीन दिनों से लाड़ला पद्मप्रभ न मुझे सोने देता है और न स्वयं सोता है | धायों के अनेक प्रकार के विशेष प्रयत्न के बावजूद भी यह शान्त भी नहीं होता, नींद लेने की बात तो बहुत दूर। किसी अच्छे वैद्य को दिखाकर सलाह लेना आवश्यक है । मुझे चिन्ता हो रही है।" ___"ठीक है, शान्तला ! अभी तो यह सो रहा है, सूर्योदय होने दो। नित्यकर्म-स्नानादि से निवृत्त होकर पूजन-स्वाध्याय करके मैं वैद्यराज को बुलाऊँगा, निश्चित रहो । सब ठीक हो जायगा ।" ऐसा कहकर गुणकीर्ति वहाँ से चले गये । शान्तला भी अन्य गृह-कार्य में लग गयी। धाय किसी बात का भी कुछ अर्थ न समझ पाई व दोनों का कथन सुनते हुए मंत्रमुग्ध-सी वहीं खड़ी रही ।