Book Title: Kundakundadeva Acharya
Author(s): M B Patil, Yashpal Jain, Bhartesh Patil
Publisher: Digambar Jain Trust

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Page 49
________________ आचार्य कुंदकुंददेव बाल जीवन देखकर भी हमारा जीवन धन्य हो गया - कृतार्थ हो गया। बड़े हो जाने के बाद की बुद्धि-प्रगल्भता के स्मरणमात्र से भी हमारा हृदय रोमांचित हो उठता है । इसकी वाणी को प्रत्यक्ष सुनने का सौभाग्य जिन्हें प्राप्त होगा, वे धन्य होंगे। ___ नगरसेठ ! जीवन की अन्तिम बेला में प्रज्ञाहीन होने पर भी यदि इस महापुरुष का एक वाक्य सुनने को मिल जाये तो वह हमारा भाग्य होगा | आज हमें जो आपने यहाँ बुलाया है, उसके लिए वह अलौकिक शब्दामृत ही हमारा पारिश्रमिक समझो। अभी हमारा यह पारिश्रमिक आपके पास ही धरोहर रूप में रहे ऐसा कहकर बालक के चरणों का अति नम्रता और भक्तिपूर्वक वंदन करके मस्तक झुकाकर चारों वैद्यराज वहाँ से चले गये। कुछ ही दिनों बाद प्रिय पदमप्रभ विषयक आनंददायक यह समाचार गांव-गांव में, नगर-नगर में पुरजन-परिजन में फैल गया । पेनगोंडे और जिनकंची मुनिसंघ में भी इस सुखद समाचार को कुछ सज्जनों ने स्वयमेव पहुँ चाय । श्रेष्ठीपुत्र की असामान्य बुद्धि की चर्चा ही साधारण जन मानस का एकमेव विषय बन चुकी थी। वन की अग्नि के समान यह चर्चा भी सर्वत्र फैल गयी। पेनोंड़े के आचार्य जिनचंद्र को इस बालक के संबंध में पहले से ही पर्याप्त जानकारी थी; जिनकंची के आचार्य पुंगव अनंतवीर्य को पद्मप्रभ बालक रत्न का सुखद समाचार प्रथम ही सुनने को मिला । श्री अनंतवीर्य आचार्य महामेधावी व अष्टांगनिनित्तज्ञानी थे। दक्षिण भारत में आपका विशेष प्रभाव एवं प्रसिद्धि थी। वे अपने निमित्त ज्ञान से बालक के भूत-भविष्य को विस्तारपूर्वक जानकर विशेष प्रभावित हुए । कहा भी है :

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