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आचार्य कुंदकुंददेव
शीतल सुगंधित पवन ने तरू-लताओं के पुष्पों को संग्रहीत करके पुष्प वृष्टि द्वारा आनंदोत्सव मनाया । उसी समय काल-पुरुष एक कुल पर्वत पर युगपुरुष के जन्मदिन के रूप में ई. स. पूर्व १०८ शार्वरी संवत्सर के माघ शुक्ल की पंचमी को उकेर रहा था।
उस दिन नगर सेठ गुणकीर्ति को अनेक वर्षों के बाद चिर अभिलषित पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई थी । अत: सारे कोण्डकुन्दपुर नगरवासियों ने बड़े उत्साह के साथ आनंदोत्सव मनाया । नगर के सभी प्रमुख स्थानों पर ही नहीं गली-गली में भी तोरण शोभायमान हो रहे थे । नगर के पांचों प्राचीन भव्यजिनमंदिरों में पूजा, भक्ति अति भक्ति भावपूर्वक हो रही थी। मंदिरों में बैठने के लिए जगह नहीं थी और घरों में तथा रास्तों पर कोई आदमी देखने को भी नहीं मिलता था । दीन-दुखियों के लिए भोजन की व्यवस्था भी की गयी
थी। ___ दस दिनों के बीत जाने पर जन्मोत्सव मनाते हुए शिशु को सुवर्णमय सुन्दर पालने में सुलाकर अनेक सौभाग्यवती स्त्रियों ने मंगल गीत गाये । शान्तला माता ने अपने सपने में चन्द्रमा की चाँदनी देखी थी इसलिए शिशु का नाम पद्मप्रभ रखा गया । जन्मोत्सव के कारण पूरे नगर में बड़े-त्यौहारों की भांति वातावरण नवचैतन्यमय बन गया था । यह आनंदोत्सव एक ही घर का मर्यादित नहीं रहा था, लेकिन बहुत व्यापक बन गया था। सेठ गुणकीर्ति ने भी अपने मित्रजनों की अभिलाषाओं की पूर्ति करने में कोई कसर न छोड़कर अपने गुणकीर्ति नाम को सार्थकता प्रदान की थी।