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आचार्य कुंदकुंददेव “भो श्रेष्ठवर ! अपने पुण्य परिणामों से पुण्यात्मा आपके घर में जन्म लेगा - ऐसा जानना-मानना भी व्यवहार है, वास्तविक वस्तुस्थिति नहीं है । एवं पच्चे पार्श्वनाथ भगवान की महिमा के कारण अथवा हमारे आशीर्वाद से पुत्र-प्राप्ति मानना भी अज्ञान ही है । क्योंकि परभव में से निकलकर इस भव में जन्म लेना अपने पुण्य-पाप और योग्यता के अनुसार होता है । यथार्थ वस्तुस्वरूप समझना प्रत्येक व्यक्ति का निजी महत्वपूर्ण कर्तव्य है । ऐसे अपूर्व तत्वज्ञान की प्राप्ति से ही जीव को सुख-शान्ति मिलती है।"
आचार्य श्री जिनचंद्र के उपदेश से दोनों के ज्ञान तथा श्रद्धा में विशेष निर्मलता तथा दृढ़ता आई । वीतराग धर्म के उद्धारक बालक को जन्म देनेवाले माता-पिता पेनगोंडे से घर लौटे । उसी दिन से उनके घर प्रतिदिन पूजा, दान, स्वाध्याय, तत्वचर्चा आदि धार्मिक कार्य पहले से भी अधिक उत्साह से चलने लगे। कालक्रम से शान्तला का गर्भ वृद्धि को प्राप्त हो रहा था ।
प्रकृति के नियमानुसार काल व्यतीत हो रहा था । अज्ञानी मनुष्य को महान पुण्योदय से प्राप्त मानवजीवन की कीमत ख्याल में नहीं आती । पुण्य से प्राप्त परिस्थिति का उपयोग पुण्य वा पवित्र परिणाम के लिए न करके पापमय परिणाम से काल गाता रहता है। वर्तमान मानवजीवन अलब्धपूर्व तत्वज्ञान प्राप्ति के लिए नहीं करता, परन्तु भविष्यकाल में भोग-सामग्री भरपूर प्राप्त हो इसलिए व्यर्थ ही परद्रव्य की प्राप्ति के लिए असफल प्रयत्न करता रहता है। पंचेन्द्रिय भोग सामग्री के समागम का मूल कारण पूर्व पुण्योदय ही है । उसके लिए वर्तमान काल में किया जानेवाला प्रयास पापयंध का कारण