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आचार्य कुंदकुंददेव
का झुंड भागने लगा | अपने पाँव से किसी एक चीज को झटकाकर एक गाय भाग गयी। गायों के पीछे आनेवाले कौण्डेश को किसी मुलायम चीज के ऊपर पाँव रखने का सा आभास हुआ; वह जोर से चिल्ला उठा और वहीं गिर गया । वहाँ से गुजरनेवाले एक व्यक्ति नजदीक जाकर प्रकाश द्वारा देखा तो ज्ञात हुआ कि कौण्डेश को साँप ने काट लिया है, तथा उसके पैर से खून बह रहा है ।
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गांव के पास वाली चट्टान पर ही यह घटना घटी थी । अतः थोड़े ही समय में यह समाचार गांव भर में फैल गया । मालिक घबड़ाकर भागता हुआ घटनास्थल पर आया और कौण्डेश को घर ले गया । वैद्यों ने उसे बचाने का अत्यधिक प्रयास किया | मंत्र-तंत्र भी किये गये पर कौण्डेश जीवित नहीं रह सका । अंतिम श्वास लेते समय भी उसने कहा “मैं नहीं मरता । मैं तो अजर-अमर हूँ । मैं आत्मा हूँ और मुझे जन्म-मरण है ही नहीं । मैं अनादि अनंत ज्ञान व सुखमय भगवान आत्मा हूँ ।" इस प्रकार हकलाते हुए बोलकर वह सदा के लिए मौन हो गया । कौण्डेश की निर्भयता, बुद्धिमत्ता और दृढ़ता जानकर गाँव के सभी लोग आश्चर्यचकित हुए । प्रतिष्ठित पुरुष की भाँति उसका अंतिम संस्कार किया गया ।
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वर्तमान में आन्ध्रप्रदेश के अंतर्गत आने वाले अनंतपुर जिले के गुटि तहसील में कोनकोण्ड नामक गांव है | यह गांव गुंतकल रेल्वे स्टेशन से दक्षिण दिशा में पाँच किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। प्राचीन शिलालेखों से यह स्पष्ट ज्ञात होता है कि यह गांव पहले कर्नाटक राज्य में था ।