Book Title: Kulak Sangraha
Author(s): Balabhai Kakalbhai
Publisher: Balabhai Kakalbhai

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Page 11
________________ a-ASKc- IN जइ कहवि दोसलेसं, ता भमसि भवे अपारंमि ॥ ७ ॥ . अर्थः-गुणवंत पुरुषोना तुं इयांना जोररुप अंधाराथी आंधळो बनीने जो कोई पण रीते लेश मात्र दोष कहाडीश, तोपण अपार संसारमा भमीश ॥ ७॥ जं अब्भसेई जीवो, गुणं च दोषं च इत्थ जम्मंमि; तं परलोए पाई, अभ्भासेणं पुणो तेणं ॥८॥ - अर्थ:-जीव ा जन्ममा गुण अथवा दोषमांथी जेनो अभ्यास पाडे ते अभ्यासे करीने फरी परलोकमा तेनेज पामे जो जंपइ परदोसे, गुणसयभरिओ वि मच्छरभरेणं; सो विउसाणमसारो, पलालपुंज व्व पडिभाइ ॥९॥ . ___अर्थः-जे पुरुष पोते सेंकडो गुणोथी भरेलो छता पण मत्सरना आवेशथी पराया दोष बोले तो ते विद्वान जनोमां पराळना पूळा माफक दम वगरनो जणाय छे ॥ ९॥ जो परदोसे गिण्हइ, संतासंतेवि दुठभावेणं; सो अप्पाणं बंधइ, पावेण निरत्थएणावि.॥ १० ॥ are Guid- अर्थ:-जे पुरुष दुष्ट भावथी छता के अछता पराया दोष ग्रहण करे ते पोताना आत्माने निरर्थक पापथी जोडे छे ॥१०॥ N

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