Book Title: Kulak Sangraha
Author(s): Balabhai Kakalbhai
Publisher: Balabhai Kakalbhai

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Page 24
________________ KRECRUGAREKOREGAOLORROCORRHONORK अर्थः-ते माटे पंचाचार ( ज्ञान-दर्शन-चारित्र-तप-वीर्य आचार ) ना आराधन हेतें छाचादिक कठण नियमो | ग्रहण करवा जोइए के जेथी ( आदरेली.) पव्रज्या सफळ थाय. ॥ ३॥ नाणाऽराहणहेउं, पइदिअहंपंचगाह पढणं मे; परिवाडीओ गिण्हे, पणगाहाणं च सठी य॥४॥ ___ अर्थः-ज्ञान आराधन हेतें म्हारे हमेशा पांच गाथाओ भणवी, कंठाग्र करवी अने परिपाटीथी ( क्रपवार ) पांच पांच गायानो अर्थ गुरु समीपे ग्रहण करवो. ॥ ४ ॥ अण्णेसिं पढणथ्थं, पणगाहाओ लिहेमि तह निच्चं; परिवाडीओ पंच य, देमि पढंताण, पयदियहं ॥५॥ .. अर्थः-वळी हुं बीमाओने भणवा माटे हमेशां पांच गाथाओ लखु अने भणनाराभोने हमेशा परिपाटीयी (क्रमबार) पांच पांच गाथा मापुं. (भणाधू-अर्थ धरा, विगेरे ). ॥ ५॥ .. वासासु पंचसया, अठय सिसिरे अ तिन्नि गिम्हमिः पइदियहं सज्झायं, करेमि सिद्धतगुणणेणं ॥६॥ अर्थ:-सिद्धांत-पाठ गणवा बडे वर्षा स्तुमा पांचसो, शिशिर रुतुमा आठसो, भने ग्रीष्य रुतुमा प्रणसो गाथा प्रमाण सज्वाय ध्यान सदाय या कर.॥६॥

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