Book Title: Kulak Sangraha
Author(s): Balabhai Kakalbhai
Publisher: Balabhai Kakalbhai

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Page 22
________________ गु. लोगुत्तमुत्तमं ठाणं, सिद्धिं गच्छसि नीरओ॥१६॥ REASURESA ___अर्थ:-हे भगवंत ! आप अहिं प्रगट ज उत्तम छो! वळी आपनी इच्छा के मनोरथ वडे करीने पण उत्तम छो अने अंते पण कर्ममलने टाळीने आप मोक्ष नामनुं सर्वोत्तम स्थानन पामवाना छो. ॥ १६॥ . हैं| आयरिय नमुक्कारो, जीवं मोएइ भव सहस्साओ; भावेण किरमाणो,'होइ पुणो बोहिलाभाए ॥१७॥ PROCEDEKARENEUR M ACHAR अर्थः-आचार्य महाराजने करेलो नमस्कार जीवने हजारो गमे भवभय थकी मुक्त करे छे, अने ते भाव सहित करवामां आवतो नमस्कार जीवने समकितनो लाभ आपे छे. ॥१७॥ | आयरिय नमुक्कारो, सव्वपावप्पणासणो; | मंगलाणं च सव्वेसि, तइयं हवइ मंगलं ॥१८॥ | अर्थ:-भावाचार्यने भावसहित करेलो नमस्कार सर्व पापने प्रकर्षे करीने नाश करनारो थाय छ भने ते सर्व | मंगळमां श्रीजु मंगल छे. १८ OLOG

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