Book Title: Kulak Sangraha
Author(s): Balabhai Kakalbhai
Publisher: Balabhai Kakalbhai

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Page 46
________________ पढमाइ पारणाई, अकरिंसु करंति तह करिस्संति; अरिहंता भगवंतो, जस्स घरे तेसिं धुव सिद्धि ॥ १९ ॥ | अथः-अरिहंत भगवंतोए जेमना घरे प्रथम (तपना) पारणां काँछे,करेछे अने करशे ते भव्यात्मा श्री अवश्य मोक्षगामीन जाणवा. | जिण भवण बिंब पुथ्थय, संघसरुवेसु सत्ताखत्तेसु; । बविअंधणंपि जायइ, सिवफलयमहो अणंतगणं ॥२०॥ | भर्यः-भहो इति आश्चर्ये जिनभुवन (जिनमंदिर) जिनबिंब (पतिमा) पुस्तक अने चतुर्विधसंघरूप साते क्षेत्रोमां वावेलं | अथ शीलमहिमागर्भित शीलकुलकम्. १६ सोहग्ग महानिहिणो, पाए पणमामि नेमिजिणवइणो; बालेण भुयबलेणं, जणदणो जेण निजिणिओ॥१॥ - भर्यः-जेमणे बाल्यावस्थामा पोताना सुनावलवडे कृष्णजीने सर्वथा नीती कीषा इता ते मुख सौभाग्यना समुद्र एका श्री नेमिनाथ प्रभुना चरण कमळने हुं पण छु. ॥ १॥ ॐापन नं] अक्षयफळ आपनाएं थाय के एम समनी धन ममता तनी तेनो सदव्यय करी धनवंत लोकोए तेनोसावोचो.२०

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