Book Title: Kulak Sangraha
Author(s): Balabhai Kakalbhai
Publisher: Balabhai Kakalbhai

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Page 68
________________ अर्थः मो बरसना छत्रीस हजार दिवस, आयुष्यनुं एटलं परिमाण होय छे. ते समये समये बोछु वतुं जायचे, पु.18| एम जाणीने धर्मपां यत्न करवो. ॥१॥ ३० जइ पोसहसहीओ तव, नियमगुणेहिं गम्मइ एगदिणं; है ता बंधइ देवाउ, इत्तियमित्ताई पलियाई॥२॥ ___अर्थः-जो कोइ जीव पोसह सहित तप नियमना गुणोथी एक दिवस गाळे तो ते आग कोशे सेटण परयो पपर्नु देवनानुं आयुष्य बांधे छे. ॥२॥ सगवीसं कोडीसया, सत्तहत्तरी कोडिलख्ख सहस्सा य; सत्तसया सत्तहुत्तरि, नवभागा सत्तपलियस्स ॥ ३ ॥ अर्थः--सत्तावीस सो क्रोड, सीत्योतेर क्रोड; सीत्योतेर टास्व सीत्योतेर हार, सातसोमे सीत्योतेर पडणा प. अष्टासीई सहस्सा, वाससये दुनिलख्ख पहराणं; एगोविअ जइ पहरो, धम्मजुओ ता इमो लाहो ॥४॥ अर्थः--एक सो वर्षना बे लाख बने अठासी हजार पहोर छे. तेमाथी जो कोइ जीव एक पण पोर वर्मबुद्ध ल्योपम अमे वली एक पल्योपमनो सातमो भाग ॥३॥ सहकृत युक्त) चाय तो तेने आग कोशे एटलो नाम थाय छे.॥४॥

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