Book Title: Kulak Sangraha
Author(s): Balabhai Kakalbhai
Publisher: Balabhai Kakalbhai

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Page 85
________________ मोहणं भवदुरिए बंधिअ खित्तोसि नेहनिगडेहिं; बंधवमिसेण मुक्का पाहरिआ तेसु को राओ ? ॥ २२ ॥ अर्थ:-मोह राजा तने स्नेह-रुपी बेडीओोथी बांधी संसाररूप बंबीखानामांनांख्यो छे. आ बंधुमोना (मातापिता, सगा संबंधी वगेरेना) व्हानाथी (नाशी न जाय माटे) पहेरेगीर मूक्या छे, माटे संसारमां पूरी राखनार ते बांधवादिपर शो राग करवो? धम्मो जणओ करुणा माया भाया विवेगना मेणं; खंति पिआ सप्पुत्तो गुणो कुटुंबं इमं कुणसु ॥ २३ ॥ अर्थः--धर्म एज पिता, करुणा तेज माता, विवेक नामनो भ्राता, क्षमा ए पिय स्त्री, अने ज्ञान, दर्शन, चारित्रादि गुरुप उत्तम पुत्रोने तुं तारुं अंतरंग कुटुंब बनाव. ॥ २३ ॥ अइपालिआइ पगइत्थिआइ जं भाभिओसि बंधेउं; संते वि पुरिसकारे न लज्जसे जीव ! तेपि ॥ २४॥ अर्थ:-- हे जीव ! तारापां पुरुषाकार ( पुरुषार्थ ) होवा छतां पण अति पालन करेली एवी कर्म प्रकृतिरूप स्त्रीओए तने बांधी चार गतिमां परिभ्रमण कराव्यो, तेथी तने (हजी ) पण शु लज्जा नयी आवती ? ॥ २४ ॥ यमेव कुणसि कम्मं तेण य वाहिज्जसि तुमं चेव;

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