Book Title: Kulak Sangraha
Author(s): Balabhai Kakalbhai
Publisher: Balabhai Kakalbhai
View full book text
________________
जत्थ य विसयविराओ कसायचाओ गुणेसु अणुराओ; | किरिआसु अप्पमाओ सो धम्मो सिवसुहो लोए॥९॥
अर्थः-जेमां विषयोथी विरक्ति होय, कषायनो त्याग होय, गुणोमा मिति होय, क्रियाओमा अप्रमादीपणुं होय | तेज जगतमा मोक्ष मुख आपवावाळो धर्म छे. ॥ ९ ।। इति ॥
-
श्री कर्म कुलकं. | तेलुकिकस्स मल्लस्स महावीरस्स दारुणा;
उवसग्गा कहं हुंता ? न हुँतं जइ कंमयं ॥१॥ अर्थः-त्रण लोकमां अद्वितीय मल्ल जेवा महावीर प्रभुने भयंकर उपसर्गो थया ते जो कर्म न होय तो केम संभवे. ॥ १ ॥ वीरस्स मिनुयग्गामे केवलिस्सावि दारूणो; अइसारो कहं हुतो न हुँतं जइ कम्मयं ॥२॥ ___ अर्थ:-जो कर्म न होय तो श्रीमहावीर स्वामिने केवलज्ञानी छतां मिनुक गाममां भयंकर अतिसार केम थयो. ॥२॥
RECRULARGICALCREC
१२.४

Page Navigation
1 ... 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112