Book Title: Kulak Sangraha
Author(s): Balabhai Kakalbhai
Publisher: Balabhai Kakalbhai

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Page 107
________________ नारयाणं जिआ सत्तनरय(उब्भ)भवा, अपज पज्जत्त भेएहिं चउदसधूवा । पुढविअपतेयवाउवणईणं तया, पंच है। | ते सुहूम थूला य दस हूंतया ॥२॥ - अर्थ नरकना जीवोना सात नरक पृथ्वीना भेदे सात प्रकार छ. ते पर्याप्ता अने अपर्याप्ता मळीने कुल चउद 151 भेद थाय तथा पृथ्वीकाय, अप्काय तेजसकाय वायुकाय अने साधारण वनस्पति ए पांच भेद सूक्ष्म अने बादर ए| | बन्ने मळी दश भेद थाय छे. ॥ २॥ अपजपज्जत्तभेएहिं वीसं भवे, अपज पजत्तपत्तेयवणस्सइ 'दुवे। एम एगिदिआ वीमदोजुत्तयाअपजपजबिंदितेइंदि चउरिंदिया ॥३॥ - अर्थ:-अपर्याप्ता अने पर्याप्ता 'ए बन्ने प्रकारे दश भेदो' होवाथी वीस भेद थाय छे तथा अपर्याप्त अने पर्याप्त ए बे भेदे प्रत्येक वनस्पति छे. ए प्रकारे एकेन्द्रियना कुल २० भेद थाय छे पर्याप्त अने अपर्याप्त बेइंद्रि, तेइंद्रि अने RI चौरिद्रियना छ भेद थाय छे. ॥३॥ नीरथलखेअरा उरगपरिसप्पया भुयगपरिसप्प सन्निसन्नि पंचिंदिया। दसवि ते पज्ज अपजत्त वीसं तया तिरिय

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