Book Title: Kulak Sangraha
Author(s): Balabhai Kakalbhai
Publisher: Balabhai Kakalbhai

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Page 100
________________ क. अंधत्तं बंभदत्तस्स सुदेवस्सावि दुस्सह; चकिस्सा वा कहं हुंतं न हुतं जइ कम्मयं ॥११॥ अर्थः-देवोथी सेवाता ब्रह्मदत्त चक्रवतिने पण कर्म विना बोजा कया कारणयो दुस्पह अंधाणु प्राप्त थपुं. ॥ ११॥ नीयगुत्ते जिणिंदो वि भूरि पुण्णो वि भारहे; ऊपजंतो कहं वीरो न हुंतं जइ कम्मयं ॥१२॥ अर्थ:- भरतक्षेत्रमा मोटा. पुन्यवान । जिनेन्द्र श्री महावीर पण नीच गोत्रमा उत्पन्न थया कारण होइ शके.? ॥ १२ ॥ अन्य अवंती सुकुमालो वि उज्जेणीए महायसो; कहं सिवाइ खजंतो न हुतं जइ कम्मयं ॥१३॥ 8/ अर्थ:-उज्जेयिनी नगरीमां मोटा गशवाला अवन्ति सुकुमार शोयाळीये भक्षण कीधुं तेनु कारण कर्पज होइ शके. ॥१३॥ सईए सुद्धसीलाए भत्तारा पंच पंडवा; दोवईए कहं हुंता न हुंतं जइ कम्मयं ॥१४॥

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