Book Title: Kulak Sangraha
Author(s): Balabhai Kakalbhai
Publisher: Balabhai Kakalbhai

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Page 95
________________ - पर्यः-राज्यादि भोगनी तृष्णानाळा भात ध्यानयी पीडा पामी नरकमां पडे छे. जाति मदबडे मदोन्मत ययेश ४ा कृमि जातिमा जन्म पामे छे. ॥१॥ कलमत्ति सियालित्ते उहाईजोणि जंति स्वमए; | बलमत्ते वि पयंगा बुद्धिमए कुक्कडा हुँति ॥२॥ अर्थः-कुळ मदवडे करीने शियालपणे, अने रुपमहे करीने उंटादिनी योनिमा उत्पन्न थाय छे. बलमदवडे पतं-है गीभा, अने बुद्धिमदी कुकडा थाय छे. ॥२॥ रिद्धिमए साणाइ, सोहग्गमएण सप्पकागाई; नाणमएण बइल्ला हवंति मय अठ अइदुष्ठा॥३॥ अर्थः-रुद्धिमदे करीने कुतरा विगरे, सौभाग्यमदे करीने सर्प कागडा विगेरे, ज्ञानमदवडे करीने बलदो थाय छे. ॥३॥ कोहणसीला सीही माया वि बगत्तणंमि वचंति; लोहिल्ल मूसगत्ते एव कसाएहिं भमडंति ॥४॥ | अर्थः-क्रोधी पाणीओ अग्निमां उत्पन्न थाय छे. मायावी बगलापणु, अने लोभी उदरपणुं पामे छे. ए मका कषायो वडे जीव भमे छे. ॥ ४ ॥ | माणसदंडेणं पुण तंदुलमच्छा हवंति मणदुष्ठा;

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