Book Title: Kulak Sangraha
Author(s): Balabhai Kakalbhai
Publisher: Balabhai Kakalbhai
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सोहा भवे उग्गतवस्स खंती, समाहिजोगोपसमस्स सोहा; नाणं सुझाणं चरणस्स सोहा, सीसस्स सोहा विणए पवित्ती९
अर्थ :- उग्र तपस्यायंत क्षमाथी शोभा पाये. जे समाधियोग • सेअ उपशमनी शोभा के ज्ञान अने शुभ ध्यान तेज चारित्रनी शोभा हे. विनयमां प्रवृत्ति करवी तेज शिष्यनी शोभा . ॥ ९ ॥
अभूसणो सोहइ बंभयारी, अकिंचणो सोहइ दिख्खेधारी; बुद्धिजुओ सोहइ रायमंती, लज्जाजुओ सोहइ एगपत्ति १०
अर्थ:- ब्रह्मचारी आभूषण विना पण शोभे छे; दिक्षाघारी अकिंचनपणे शोभे छे. राजानो मंत्री बुद्धियुक्त होय तो शोभे छे. लज्जा युक्त पतिव्रता स्त्री शोभे छे. ॥ १० ॥
अप्पा अरी होइ अणवडिअस्स, अप्पा जसो सीलमओनरस्स; अप्पा दुरप्पा अणवडियस्स, अप्पा जिअप्पा सरणं गई य ११
अर्थ:- अनवस्थित चित्तवाळाने पोतानोज आत्मा वैरी होय. शीळवंत पुरुषनो आत्मा सर्व ठेकाणे जश पामे. अवस्थित वाळा पोतानोज आत्मा दुरात्मा जाणवो. ज्यारे आत्मा इंद्रियोने जीती मनने वश करे, स्मारे जीतात्मा संसारथी व्होता प्राणीओने आश्रयभूत थाय ॥ ११ ॥
न धम्मका परमत्थि कज्जं न पाणिहिंसा परमं अकज्जं
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